शिखर पर साख

Upendrra Rai
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Chairman & Managing Director, Editor-in-Chief, The Printlines | Bharat Express News Network
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Nazaria: शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन भारत के नजरिये से काफी हद तक सफल कहा जाएगा. अव्वल तो 6 वर्ष पूर्व इस समूह का पूर्ण सदस्य बनने के बाद यह पहला मौका रहा, जब भारत ने यूरेशिया क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण इस सम्मेलन की मेजबानी की. साथ में इस सम्मेलन का आयोजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ऐतिहासिक अमेरिका यात्रा के तुरंत बाद हुआ. एससीओ की संरचना और रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में ये भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का एक और बड़ा संकेत है. एससीओ को अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के समूह नाटो के खिलाफ चीन और रूस की अगुवाई वाले यूरेशियाई नाटो के रूप में देखा जाता रहा है. ऐसे में अमेरिकी दौरे के तुरंत बाद सम्मेलन की अध्यक्षता दो बिल्कुल विपरीत ध्रुवों के बीच सामंजस्य बनाकर वैश्विक संतुलन में अहम योगदान के लिहाज से भी भारत की महत्ता को स्थापित करता है. बेशक शिखर सम्मेलन में चीन और पाकिस्तान ने अपनी ओर से अड़ंगा डालने की भरपूर कोशिश की लेकिन भारत के बढ़ते कद ने ये सुनिश्चित किया कि नवागत सदस्य ईरान समेत अन्य एससीओ देश हमारे साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाने के लिए उत्सुक दिख रहे हैं।

पिछले साल जब एससीओ देश समरकंद में मिले थे, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को ‘यह युद्ध का युग नहीं है’ वाली सलाह वैश्विक सुर्खियां बनी थीं. इस बार करीब ढाई घंटे चले सम्मेलन में उस तरह का कोई युगांतरकारी बयान तो सामने नहीं आया, लेकिन आतंकवाद और क्षेत्रीय अखंडता के मुद्दों पर पाकिस्तान और चीन को प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह आईना दिखाया. इसकी झलक सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में भी दिखाई दी.

सीमा-पार से पोषित आतंकवाद की आलोचना करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने दो-टूक कहा कि आतंकवाद को अपनी पॉलिसी का औजार बनाने वालों और आतंकियों को पनाह देने वालों की एक सुर में निंदा होनी चाहिए. आतंकवाद को वैश्विक और क्षेत्रीय शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए प्रधानमंत्री ने एससीओ देशों को इस महत्वपूर्ण विषय पर अपना संकोच तोड़ने और इसके खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए प्रेरित किया. वहीं, आतंक से निपटने में ‘दोहरा रवैया’ छोड़ने की बात कर प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से चीन को भी आड़े हाथों लिया.

पाकिस्तान दशकों से भारत के खिलाफ आतंकी भेजता रहा है और जब पूरी दुनिया उसका विरोध करती है तो संयुक्त राष्ट्र में चीन किसी भी तर्कसंगत कार्रवाई की राह में दीवार बन जाता है. मुंबई हमले में भारत का गुनहगार हाफिज सईद, उसका बेटा हाफिज तल्हा, हाफिज सईद का एक और रिश्तेदार अब्दुल रहमान मक्की, लश्कर का आतंकी शाहिद महमूद, पुलवामा हमले में शामिल जैश आतंकी मसूद अजहर, उसका भाई अब्दुल रउफ जैसे आतंकियों पर चीन के रहमोकरम की लिस्ट बहुत लंबी है. पिछले महीने ही चीन ने मुंबई हमले के आरोपी 50 लाख अमेरिकी डॉलर के इनामी साजिद मीर को ‘वैश्विक आतंकी’ घोषित करने के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में बाधित किया था. इसका जिक्र प्रधानमंत्री मोदी के हालिया अमेरिकी दौरे पर व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ उनके संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी आया था. मुंबई आतंकवादी हमलों के 15 साल बाद भी, इस गुनाह के साजिशकर्ताओं को अभी तक न्याय के कटघरे में नहीं लाया जा सका है. इसलिए आतंकवाद से लड़ने के लिए पहला और सबसे महत्वपूर्ण निर्णय दोहरे मानकों से बचना और अच्छे आतंकवादी बनाम बुरे आतंकवादी की बेतुकी दलील को हमेशा के लिए दफन कर देना होगा.

राष्ट्र हित की ओर लक्षित प्रधानमंत्री मोदी की यह साफगोई चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के मामले में भी दिखी. साम्राज्यवादी चक्रव्यूह को विस्तार देने वाली चीन की यह महत्वाकांक्षी परियोजना गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके पर भारत के आधिकारिक दावे और दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में भारतीय प्रभाव की राह में एक चुनौती है. प्रधानमंत्री ने इस पहल का विरोध करते हुए साफ संदेश दिया कि किसी सदस्य देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने वाली कनेक्टिविटी परियोजनाएं इस क्षेत्र के लिए संपत्ति नहीं हो सकती. भारत नई दिल्ली घोषणा के उस पैराग्राफ से भी बाहर रहा जिसमें अन्य सदस्यों ने बीआरआई के लिए अपने समर्थन की पुष्टि की.

भारत के कड़े स्टैंआड पर पाकिस्तान और चीन की असहजता उनके राष्ट्र प्रमुखों के संबोधन वाले बयानों में भी दिखी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तो इतने बौखलाए कि भारतीय मुसलमानों और कश्मी्र का नाम लिए बिना ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का इस्तेमाल कर अपनी झल्लाहट निकालते नजर आए. आतंकवाद का इस्तेमाल राजनयिक हथियार के रूप में नहीं किए जाने की अपील को भी इसी भाव के विस्तार की तरह देखा समझा गया. हाल के दिनों में भारत करीब-करीब सभी अंतरराष्ट्री य मंचों पर पाकिस्ताकन की धरती से हो रहे आतंकवाद का मुद्दा उठाता रहा है और इस रणनीति को दुनिया भर से मिल रहे समर्थन का दबाव अब पाकिस्तान पर दिखाई देने लगा है.

शिखर सम्मेलन का एक और सकारात्मक पक्ष रहा शी जिनपिंग और शहबाज शरीफ की मौजूदगी में रूसी राष्ट्रपति पुतिन का प्रधानमंत्री मोदी को ‘थैंक यू’ कहना. जाहिर तौर पर ये आभार केवल शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए नहीं था, बल्कि यूक्रेन से युद्ध के कारण मुश्किलों में घिरे अपने देश को भारत के समर्थन से मिल रही ताकत के लिए भी था, जो पिछले एक वर्ष से भी ज्यादा समय से उसके लिए संजीवनी बनी हुई है. एक सप्ताह से भी कम समय में ये दूसरा अवसर था जब पुतिन भारत के मुरीद बनते दिखे. 30 जून को भारत की प्रशंसा की वजह मेक इन इंडिया थी, जिसकी तारीफ करते हुए पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना दोस्त और उनकी इस पहल को एक ऐसी प्रभावी अर्थव्यवस्था की बुनियाद बताया था, जो विदेशी उत्पादों का इस्तेमाल करने के बजाय स्वयं आधुनिक सामान, सेवाओं और तकनीकों को तैयार कर रही है. पिछले सप्ताह रूस में हुए बवाल के बाद एससीओ का शिखर सम्मेलन ही वो पहला अवसर बना जब पुतिन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने किसी अंतरराष्ट्रीय आयोजन में उपस्थित हुए. वैगनर आर्मी ने जब उनकी सत्ता को चुनौती दी थी, तब भी संकट के समय पुतिन ने अपने दोस्त प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया था.

वर्तमान दौर के ये तमाम बदलाव देश की आक्रामक होती विदेश नीति का कमाल है, जिसने प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में भारत को एक ही समय में रूस और अमेरिका की जरूरत बना दिया है. यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय देश और अमेरिका की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध के बाद रूस की हालत कमजोर हुई है. उस पर आने वाले दिनों में नाटो देशों के साथ आमने-सामने के टकराव की तलवार भी लटकी हुई है. अगर ऐसी कोई नौबत आती है तो पुतिन अच्छी तरह जानते हैं कि डैमेज कंट्रोल का जो काम जिनपिंग नहीं कर सकते हैं, वो अमेरिका समेत पश्चिमी देशों पर अपने प्रभाव के कारण प्रधानमंत्री मोदी ही कर सकते हैं. दूसरी तरफ हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन और रूस के बढ़ते गठजोड़ के बीच अमेरिका भी भारत से अपने संबंध प्रगाढ़ करने का आकांक्षी है.

सार यही है कि आतंक के खिलाफ एकजुट हो रही पूरी दुनिया के लिए एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी का ऐतिहासिक संदेश समूची मानवता के लिए एक दूरदर्शी दस्तावेज है. मौजूदा साल वैसे भी भारत के लिए एक अहम राजनयिक कालखंड है। एससीओ के अलावा भारत इसी साल सितंबर में जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन की भी मेजबानी करने वाला है. बेशक दोनों मंचों की प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं, लेकिन सच तो यही है कि भारत इस दोहरे दायित्व को बखूबी संभाल रहा है.

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