Sindur Khela: शारदीय नवरात्रि का समापन हो गया है और आज पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ दशहरा का त्योहार मनाया जा रहा है. यह उत्सव रंग ढंग से मनाने की परंपरा है दुर्गा पूजा के दौरान पश्चिम बंगाल में अलग ही नजारा देखने को मिलता है. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा उत्सव भव्य तरीके से मनाया जाता है. यहां दुर्गा पूजा के उत्सव में सिंदूर की होली खेलने की परंपरा बहुत प्रचलित है.
शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन जब मां दुर्गा की विदाई की जाती है तो उनके सम्मान में सिंदूर की होली खेली जाती है. सिंदूर की होली खेलने की परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है. तो आइए जानें क्या है सिंदूर खेला परंपरा की इतिहास…
बंगाल की दुर्गा पूजा सबसे खास
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान होने वाली संध्या आरती इतनी भव्य होती है कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. विजयदशमी के दिन दुर्गा पूजा के दौरान सिंदूर खेला इस उत्सव की सबसे खास परंपरा है.
कैसे मनाते हैं सिंदूर खेला?
दशहरा के दिन महाआरती के साथ इस दिन का आरम्भ होता है. आरती के बाद भक्तगण मां अम्बे को कोचुर, शाक, इलिश, पंता भात आदि का भोग लगाते हैं. इसके बाद मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है जिसमें माता के चरण कमलों के दर्शन होते हैं. मान्यता है कि इससे घर में सुख-समृद्धि आती है. इसके बाद सिंदूर खेला शुरू होता है. सिंदूर खेला में मां दुर्गा की सिंदूर से मांग भर कर उनकी विदाई की जाती है. सभी शादीशुदा महिलाएं मां को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ती हैं इसके बाद सभी सुहागिनें मां का आशीर्वाद लेती हैं, धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं. फिर एक दूसरे को सिंदूर लगाकर सिंदूर खेला की रस्म निभाती हैं.
सिंदूर खेला का इतिहास
कहा जाता है कि सिंदूर खेला रस्म की परंपरा 450 साल से भी अधिक पुरानी है. इसकी शुरुआत बंगाल से हुई थी और अब यह काशी सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में इसकी खासी रंगत देखने को मिलती है. मान्यता है कि मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और जब उनकी विदाई होती है तो उनके सम्मान में सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है.