Bombay High Court: पति पत्नी के बीच वाद विवाद आम बात है. कई बार ये विवाद ज्यादा बढ़ जाते हैं और स्थिति तलाक तक पहुंच जाती है. कई बार पति पत्नी में से कोई एक कोर्ट जाकर तलाक के लिए अर्जी दायर करते हैं. इसके बाद एक दूसरे से छुटकारा पा लेते है. नियमों के अनुसार अगर तलाक के लिए अर्जी पति द्वारा दायर की गई है और तलाक मिल जाता है, वैसी सूरत में उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होता है. इन सब के बीच जो मामला हम आपके लिए लेकर आएं है वो थोड़ा सा अलग है. आइए आपको बताते हैं.
जानिए मामला
दरअसल, एक निजी समाचार वेबसाइट पर छपी खबर के अनुसार एक शख्स ने बांबे हाई कोर्ट मे तलाक की अर्जी डाली. उसने यह कहा कि पत्नी उसके घर में यानी ससुराल में रह रही है तो उसे जुर्माना क्यों दें. इस मामले में कोर्ट ने कहा कि उसकी पत्नी भले उसके घर में रह रही हो, फिर भी वो गुजारा भत्ता की हकदार है. बताया जा रहा है कि एक कपल ने 2012 में शादी की. दोनों के बीच रिश्ता 2020 तक काफी अच्छा चला. बाद में स्थिति खराब होने के कारण पति ने कल्याण फैमिली कोर्ट के सामने तलाक की अर्जी 2021 में लगाई.
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इस मामले की सुनवाई के दौरान पत्नी नेे गुजारा भत्ता के लिए अपील की. इसपर कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि पति अपने पत्नी को 15 हजार रुपए और बेटे को 10 हजार रुपए मासिक गुजारा भत्ता दे.बाद में कल्याण कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने बाम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की. पति ने दलील दी कि उसकी पत्नी उसके ही घर में रहती है. ऐसे में गुजारा भत्ता देना अन्यायपूर्ण है. पति का कहना है कि वह अपनी मां के साथ किराए के घर में रहता है.
जानिए हाई कोर्ट ने क्या कहा
बाम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता इंजीनियर है और उसकी मासिक आय एक लाख तीस हजार रुपए है यही नहीं वो कार मालिक होने के साथ साथ शेयरहोल्डर भी है. वहीं, उसकी पत्नी ने एमबीए की पढ़ाई भले की है, लेकिन वह बेरोजगार है. किसी तरीके से वह फ्रीलांस कर के 10 हजार रुपए कमा पाती है. इस स्थिति में इतने राशि में गुजारा करना संभव नहीं है. मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गोखले ने कहा कि पति के घर में उसकी पत्नी भले ही रहती हो वो उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ सकता. यही नहीं अगर दोनों की शादी कामयाब नहीं हुई तो उसका यह अर्थ नहीं कि वो दूसरे पक्ष यानी पत्नी को सजा देगा.
हाईकोर्ट ने कहा कि गुजार भत्ता तय करने के लिए कोई सीधा फॉर्मूला नहीं है. अगर कानून की मानें तो यह न्यायसंगत और वास्तविकता के करीब होनी चाहिए. इस टिपप्णी के साथ कोर्ट ने पति के अर्जी को ठुकरा दिया और कल्याण फैमिली कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी. कोर्ट ने कहा कि कल्याण कोर्ट का फैसला किसी भी तरह से कानून की किसी भी धारा का उल्लंघन नहीं करता है.