Navratri Special: गरबा, डांडिया और दुर्गापूजा के बारे में क्‍या कहते हैं शास्‍त्र? जानें इ‍नका इतिहास

Must Read

Navratri: हिन्‍दूओं का विशेष पर्व शारदीय नवरात्रि का आगाज आज यानी 15 अक्‍टूबर से हो चुका है. इसका समापन 24 अक्‍टूबर यानी दशमी के दिन होता है. नवरात्रि का त्‍योहार पूरे देश में अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है. इस त्‍योहार में जगह-जगह पंडाल बनाकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्रि में मां के नौ स्‍वरूपों की पूजा की जाती है. इस पर्व में कुछ लोग नौ दिनों का व्रत रखते हैं वही कुछ लोग पहली और अष्‍टमी तिथि का व्रत रखते हैं.

नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्‍सव में गरबा, डांडिया और दुर्गापूजा का आयोजन होता है. लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा है कि नवरात्रि में इन सभी कार्यक्रमों का आयोजन क्‍यों होता है? इसका क्‍या इतिहास है? क्‍या शास्‍त्रों और पुराणों में इसका जिक्र है? चलिए आज जानते हैं कि नवरात्रि को लेकर शास्‍त्र और पुराणों में क्‍या वर्णित है…

 नवरात्रि का मूल स्वरूप है आनंद और भक्ति  

नवरात्रि त्‍योहार का मूल स्‍वरूप भक्ति और आनंद ही है. नवरात्रि का पर्व उत्तर भारत में घट स्थापना, पूर्वी अंचल में दुर्गा पूजा तो दक्षिण में गोलू स्थापना के रूप में मनाया जाता है. सभी लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. जहां तक गरबा और भारत का प्रश्न है तो पहले गुजरात और मुंबई तक सीमित था. लेकिन अब गरबा कार्यक्रम लगभग देशभर में आयोजित होने लगा है.

नवरात्रि में दुर्गा पूजा का इतिहास

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के इतिहास के बारे में बात करें तो बंगाल के पर्यटन विभाग के 2018 के आंकड़े खंगालने पर मिला कि यह पर्व बंगाल में मनाया जाता है. बंगाल में दर्ज गजट के लेख के मुताबिक, यहां पन्द्रहवीं सदी में मालदा और दिनाजपुर में पहली दुर्गापूजा मनाई गई. वहां पहले से रह रहे लोगों का मानना है कि ताहिरपुर के राजा कंगशा नारायण या नादिया के भाभा नारायण ने त्‍योहार के दौरान भोग खिलाने की परम्परा 1606 में आरम्भ की.

पहली सार्वजनिक पूजा बरोरयारीयों ने शुरू की, इसलिए यहां इस पूजा को बारोरी पूजा भी कहा जाता हैं. गुप्तापारा के बारह लोगो ने हुगली में इस पूजा की शुरूआत हुई. बारो का मतलब बारह और यारी मतलब दोस्त. तो यह पूजा 12 दोस्तो द्वारा आरम्भ हुई जोकि आज तक जारी है. कोलकाता में पहली पूजा का आयोजन 1832 में राजा हरिनाथ ने कोसिम बाजार में शुरू की थी.

सतयुग काल से चली आ रही है देवीपूजा की प्रथा

बात करें देवी पूजा की तो शिवपुराण उमा संहिता 51.73-82 के मुताबिक, नवरात्रि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है. शिवपुराण में वर्णन है कि विधिपूर्वक नवरात्रि में मां का पूजन करने पर विरथ के पुत्र सुरथ ने खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया था. ध्रुवसन्धि के पुत्र सुदर्शन ने विधिवत नवरात्रि करने पर अयोध्या को पाया था.

ये सभी विधियां सबसे पुराने घटक शाक्त परंपरा में आती है. इन सनातन कर्मो का वर्णन ऋग्वेद में भी है. आचार्य सायन द्वारा लिखे ऋग्वेद के भाष्य (7.103.5) में शाक्त को शाक्त स्येव लिखा है. अर्जुन ने भी दुर्गा की पूजा की थी (महाभारत भीष्म पर्व 23 अध्याय) ऋग्वेद में भी देवीसूक्तम का उल्लेख है (1०.125.1–8). इससे साबित होता है कि मां देवी पूजा सतयुग काल से चली आ रही है.

देवी भागवत के तृतीय खण्ड में तृतीय कांड में लिखा है कि, जब प्रभु श्रीराम माता सीता को ढूंढने निकले तो नारद की सलाह पर देवी पूजा की थी. तृतीय कांड के अध्याय 21 में स्वर्ग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को यज्ञ करते हुए कहा गया है.

गरबा की शुरुआत कैसे हुई?

नवरात्रि में गरबा और डांडिया खेलने की परंपरा बहुत पुरानी है. पहले इसे गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में खेला जाता था,लेकिन धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई. अब यह लगभग देशभर में खेला जा रहा है. कर्म और दीप से मिलकर बना है गरबा शब्द. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के घड़े में कई छेद किए जाते हैं, जिसके अंदर एक दीपक जलाकर रखा जाता है. इसके साथ चांदी का एक का सिक्का भी रखते हैं. इस दीपक को दीप गर्भ कहते हैं. 

दीप गर्भ की स्थापना के पास महिलाएं रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां दुर्गा के समक्ष नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं. बता दें कि दीप गर्भ,नारी की सृजन शक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है. इस तरह यह परंपरा आगे बढ़ी और आज सभी राज्यों में गरबा का आयोजन किया जाता है.

डांडिया की शुरूआत

नवरात्रि पर डांडिया का भी आयोजन होता है. डांडिया को ‘डांडिया रास’ के नाम से भी जाना जाता है. यह गुजरात का एक लोक नृत्य है. इसकी उत्पत्ति के बारे में बात करें तो डांडिया की उत्‍पत्ति भारत से हुई है. इसका संबंध उस युग से है जब देवी दुर्गा के सम्मान में गरबा के रूप में नृत्य किया जाता था. मान्यता है कि डांडिया मां दुर्गा और महिषासुर के बीच एक नकली लड़ाई का प्रतिनिधित्व करता है. डांडिया नृत्‍य में डांडिया की छड़ें देवी दुर्गा की तलवार का प्रतिनिधित्व करती हैं. यह गरबा के बाद किया जाता है.  
वहीं यह भी मान्‍यता है कि डांडिया भगवान कृष्ण की रास लीला से जुड़ा है, जिसे गोपियां के नाम से जाना जाता है. डांडिया ग्रूप में किया जाता है जहां पुरुष और महिलाएं सुन्‍दर और रंगीन कपड़े पहनते हैं और नवरात्रि में मस्ती में नृत्य करते हैं.  

Latest News

बोतल में लगाना चाहते हैं मनी प्लांट? जान लें ये सीक्रेट तरीका, तेजी से ग्रो करेगा पौधा

Money Plants Grow in a Bottle of Water: प्राकृतिक से प्रेम करने वाले लोग अक्‍सर अपने घरों को सजाने के...

More Articles Like This