Hindi Diwas 2024: हर साल 14 सितंबर के दिन देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है. हमारे देश भारत में हिंदी सबसे ज्यादा बोली और सुनी जाने वाली भाषा है. आम बोलचाल की भाषा में हिंदी का अपना महत्वपूर्ण योगदान है. सबसे खास बात ये है कि मंडेरिन, स्पेनिश और अंग्रेजी के बाद हिंदी भाषा दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. इसी वजह से हिंदी के महत्व को लोगों के बीच पहुंचाने के लिए प्रत्येक साल देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है.
भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा दे दिया था. इसी के साथ हिंदी दिवस को मानाने की शुरुआत हुई. जानकारी हेतु बता दें कि गूगल ने सबसे पहले अपने सर्च इंजन पर साल 2009 में लिया था. इसके बाद हिंदी वेब एड्रेस बनाने की सुविधा 2010 से शुरू की गई थी.
गायब हो रही हिंदी की बिंदी
आज के इस बदलते दौर में ज्यादात्तर लोग अपने आपको इस कदर ढाल चुके हैं, कि उन्हें हिंदी बोलने या लिखने में शर्म आती है. आज के इस डिजिटल युग में लोगों ने हिंदी भाषा को ही नया रूप दे दिया है. क्योंकि आज की हिंदी से हिंदी नहीं बल्कि हिंग्लिश हो गई है. इसी वजह से हिंदी में अनेक गलतियां मिल रही हैं. हिंदी के शुद्ध वर्तनी की बात करें तो मात्राओं में से बिंदी गायब की जा चुकी है.
जैसे महिलाओं के 16 श्रृंगार बिंदी के बिना अधूरा होता है, वैसे ही हिंदी भी बिंदी के बिन अधूरी लगती है. लेकिन आलम यह है कि वर्तनी अशुद्धियों के चलते हिंदी से बिंदी गायब होती जा रही है. हिंदी वर्तनी के अनुसार आधे ‘म’ के लिए ‘गोल’ और आधे ‘न’ के लिए ‘चौकोर’ बिंदी हुआ करती थी. इसी के साथ चंद्र बिंदु भी हुआ करता था, लेकिन आज के बदलती भाषा और डिजिटल के दौर में सारे बिंदी को एक ही कर दिया गया है. इस परिवर्तन के चलते अर्थ का अनर्थ तो हो ही रहा है साथ ही उच्चारण भी अशुद्ध होता जा रहा है.
कैसे मिलेगा हिंदी को सम्मान
हमारे देश भारत में सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा हिंदी ही है. देश के अधिकतर हिस्से में लोग हिंदी में बात करना पसंद करते हैं. ऐसे में हम अगर हिंदी के सम्मान के बारे में बात करते हैं तो बोलते या लिखते समय शब्द का सही उच्चारण और लिखने के दौरान मात्राओं का प्रयोग कर के हिंदी का सम्मान किया जा सकता है. दरअसल, बिना मातृभाषा के समाज की तरक्की संभव नहीं है.
इसका उल्लेख भारतेंदु हरिश्चंद्र के इस पंक्ति में मिलती है,- ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल’ मतलब मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है.