Parakram diwas 2024: 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है. पराक्रम दिवस का नाता भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी नेता जी सुभाष चंद्र बोस से है. नेता जी देश के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं, जिनसे अंग्रेज कांपते थे. उन्होंने देशवासियों को कई संदेश दिए, जो देशवासियों को हमेशा प्रेरित करते हैं. पराक्रम दिवस साहस को सलाम करने का दिन है. इस अवसर पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. स्कूल-कॉलेज में पराक्रम दिवस का महत्व बताया जाता है और स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की याद को ताजा किया जाता है. पराक्रम दिवस पर सुभाष चंद्र बोस को नमन किया जाता है और उनके योगदान को याद किया जाता है. ऐसे में सवाल ये है कि 23 जनवरी को ही क्यों पराक्रम दिवस मनाया जाता है. आइए जानते हैं पराक्रम दिवस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाता और 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाने की वजह के बारे में…
नेताजी का पूरा जीवन ही साहस व पराक्रम की कहानी
देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने में सुभाष चंद्र बोस ने अहम भूमिका निभाई थी. नेताजी का पूरा जीवन ही साहस व पराक्रम की कहानी है. बोस जी ने नारा दिया था, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’. इस नारे ने भारतीयों के दिलों में आजादी की मांग को लेकर जल रही आग में घी डालने का काम किया था.
पराक्रम दिवस का इतिहास
हर वर्ष की तरह इस बार भी नेताजी की जन्म जयंती मनाई जाएगी. बस फर्क इतना है कि अब उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसलिए अब कोई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर बधाई देता है तो वो पराक्रम दिवस के रूप में देता है. प्रतिवर्ष 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2021 में की थी. भारत सरकार की घोषणा के बाद हर वर्ष पराक्रम दिवस 23 जनवरी को मनाया जाने लगा.
23 जनवरी को ही क्यों मनाते हैं पराक्रम दिवस
यह दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम समर्पित किया गया है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था. उनकी जन्म जयंती के अवसर पर हर साल पराक्रम दिवस मनाकर नेता जी को याद किया जाता है. आजादी के लिए उनके योगदान के लिए उन्हें नमन किया जाता है.
पराक्रम दिवस के रूप में ही क्यों मनाते हैं बोस की जंयती?
नेताजी की जयंती पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की भी वजह है. उनका संपूर्ण जीवन हर युवा और भारतीय के लिए आदर्श है. भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए नेता जी इंग्लैंड पढ़ने गए लेकिन देश की आजादी के लिए प्रशासनिक सेवा का परित्याग कर स्वदेश लौट आए. यहां बोस ने आजाद भारत की मांग करते हुए आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद फौज का गठन किया. इतना ही नहीं उन्होंने खुद का आजाद हिंद बैंक स्थापित किया, जिसे 10 देशों का समर्थन मिला था. उन्होंने देश की आजादी की जंग विदेशों तक पहुंचा दी.
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