घर पर बल्ब जालाने के लिए लगते हैं 2 तार, लेकिन एक ही तार से कैसे चलती है ट्रेन, जानिए वजह

Abhinav Tripathi
Abhinav Tripathi
Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Interesting Facts: भारतीय रेल विश्व का का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. रेल की यात्रा न केवल किफायती होती है, बल्कि आरामदायक भी होती है. समय के साथ ट्रेन के टेक्नोलॉजी में भी काफी परिवर्तन किया गया है. भारतीय रेल के इंजन अब बिजली के सहारे चल रहे हैं, इससे पहले डीजल इंजन का प्रयोग किया जाता था. रेलवे में जितनी भी लोकोमोटिव मशीन हैं, जो कि ट्रेनों को खींचने का काम करती हैं. वो लगभग इलेक्ट्रिक हो गई हैं जो बिजली से चलती हैं.

कई लोगों को इस बात को जानने की जिज्ञासा होती है, कि ट्रेन का इलेक्ट्रिक इंजन कैसे काम करता है. वहीं, ये भी सवाल है कि ट्रेन को बिजली सप्लाई देने के लिए केवल एक तार का ही प्रयोग किया जाता है, लेकिन घर में बिजली की सप्लाई के लिए दो तारों की आवश्यकता होती है. आज आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि ट्रेन का इलेक्ट्रिक इंजन कैसे काम करता है.

एक तार से कैसे चलती है ट्रेन
आपको बता दें कि कुछ समय पहले तक हालांकि, देश के कुछ हिस्सों में अभी भी डीजल लोकोमोटिव का प्रयोग किया जाता है. हालांकि, अब लगभग सभी डीजल लोकोमोटिव को हटा कर इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव का प्रयोग किया जा रहा है.

दरअसल, डीजल लोकोमोटिव में बिजली इंजन के अंदर की बनाई जाती है. इससे इतर इलेक्ट्रिक इंजन को बिजली ओवरहेड वायर से मिलती है. रेल इंजन के ऊपर लगा पेंटोग्राफ तार से लगातार इंजन में बिजली सप्लाई करता है. हालांकि ये बिजली सीधे मोटर के पास नहीं जाती है, बल्कि ट्रेन में लगे ट्रांसफॉर्मर के पास जाती है.

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वहां से बिजली के वोल्टेज को कम ज्यादा किया जाता है. वोल्टेज को कंट्रोल करने का काम इंजन में बैठा लोका पायलट नॉच की की हेल्प से करता है.

ऐसे काम करता है इलेक्ट्रिक इंजन
दरअसल, सर्किट ब्रेकर से आउटपुट करंट इंजने के ट्रांसफॉर्मर और सेमीकंडक्टर को बांटते हैं. साथ ही एसी (Alternating Current) को पहले एक ट्रांसफॉर्मर में भेजा जाता है, जो ट्रेन के संचालन के लिए आवश्यक वोल्टेज को स्थापित करता है. इसके अगले चरण में एसी को रेक्टिफायर ट्रांसफर किया जाता है, जिसको यहां से डायरेक्ट करेंट में बदल दिया जाता है. वहीं, डीसी ऑक्सीलरी इनवर्टर की मदद लेते हुए 3 फेज एसी में बदला जाता है. इस करेंट का प्रयोग जुड़ी ट्रैक्शन मोटर रेगुलेट करने हेतु किया जाता है. इसके बाद जैसे ही मोटर चलना शुरू होता है, पहिए चलने भी शुरू हो जाते हैं.

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