महिला नागा साधुओं के ये रहस्य जान रह जाएंगे दंग, जानिए आखिर कुंभ के बाद कहां हो जाती हैं गायब?

13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है. 45 दिनों तक चलने वाले इस धार्मिक मेले का समापन 26 फरवरी को होगा. हर बार की तरह नागा साधु कुंभ के सबसे बड़े आकर्षण हैं. जिनमें महिला नागा साधु भी शामिल हैं.

आखिर कोई महिला नागा साधु कैसे बनती है. वो कहां रहती हैं. उनकी जिंदगी से जुड़े रहस्यों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे महिला नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में...

बता दें कि पुरुष नागा साधुओं के जैसे महिला नागा साधु भी सांसारिकता से दूर एक संन्यासी होती हैं. गृहस्थ जीवन त्यागकर वो सिर्फ ईश्वर आराधना में रमी रहती हैं.

महिला नागा साधुओं के लिए रिश्ते-नाते, मोह-माया, पैसा-संपत्ति का कोई मतलब नहीं होता है. वो केवल भगवान के ध्यान में अपना जीवन गुजार देती हैं.

नागा साधु बनने के लिए वही महिलाएं पात्र होती हैं, जो गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को पूरा कर चुकी हों या जिन्होंने गृहस्थी बसाई ही न हो.

नागा साधु बनने के लिए उन्हें 10 से 15 सालों तक ब्रह्मचर्य के कठिन व्रत का पालन करना पड़ता है. उन्हें अपने गुरू को भरोसा दिलाना पड़ता है कि वो खुद को ईश्वर आराधना में समर्पित कर चुकी हैं.

इसके बाद ही उन्हें नागा साधु बनाने की स्वीकृति दी जाती है. कुंभ के दौरान महिला साधु को अपने बाल मुंडवाकर स्वयं का पिंडदान करना पड़ता है.

इसके बाद उन्हें पवित्र नदी में स्नान कर प्रभु की स्तुति करवाई जाती है. संन्यासी से नागा साधु बनने की इस प्रक्रिया में करीब 10 से 15 साल का वक्त लग जाता है.

नागा साधु बनने के बाद साधु-साध्वी महिलाओं को माई, माता, अवधूतानी या नागिन कहते हैं. दीक्षा के बाद महिला नागा साधुओं को नया नाम भी मिलता है.

महिला नागा साधु केवल शाकाहारी चीजें ही खा सकती हैं. इनमें कंदमूल, फल, फूल, पत्तियां और जड़ी-बूटी शामिल हैं.

महिला नागा साधु किसी न किसी बड़े अखाड़े से जुड़ी होती हैं. हालांकि उनके रहने के अपने अलग आश्रम होते हैं, जहां पर वे बाकी महिला साध्वियों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं.

बता दें कि महिला नागा साधुओं को नग्न रहने की अनुमति नहीं होती. उन्हें बिना सिला हुआ गेरुआ रंग का एक कपड़ा पहनना होता है, जिसे गंती कहा जाता है.

उन्हें अपने अपने माथे पर लंबा तिलक लगाना जरूरी होता है. कुंभ संपन्न होने के पश्चात वे वापस अपने आश्रमों को लौट जाती हैं.