Jammu Kashmir में अनुच्छेद 370 पर आया SC का फैसला, इन प्वाइंट्स के जरिए जानें 

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किए चार साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है. 

सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है.

अनुच्छेद 370 पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद प्रयोग की जाने वाली शक्तियों पर प्रतिबंध हैं. 

जजों ने इस मामले में तीन फैसले लिखे हैं. 5 अगस्त 2019 को संसद ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था, साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था. केंद्र के इन्हीं फैसले को चुनौती दी गई है.

1949 को भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 शामिल किया गया था. यह जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग रखता था. 

इसके तहत राज्य सरकार को अधिकार था कि वो अपना संविधान तैयार करे. संसद को राज्य में कोई कानून लाने के लिए यहां की सरकार की मंजूरी लेनी होती थी. जम्मू-कश्मीर का ध्वज भी अलग था.

अक्टूबर 1947 में कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय पत्र यानी ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किया था. उन्होंने प्रिंसले स्टेट को भारत में विलय पर सहमति जाहिर की थी

साल 1949 में जम्मू-कश्मीर की सरकार ने इसका एक प्रस्ताव तैयार किया. 27 मई 1949 को कश्मीर की संविधान सभा ने इसे कुछ बदलाव के साथ स्वीकार किया. वहीं, 17 अक्टूबर, 1949 को ये संविधान का हिस्सा बन गया

भारत सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा खत्म कर दिया था.

इसके बाद जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. वहीं, लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.

इसके लिए सरकार की तरफ से 'जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून', 2019 लाया गया. इसे चुनौती दी गई है. 

विपक्ष की तरफ से लगातार कोशिश की जा रही है कि जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर से अनुच्छेद 370 की वापसी हो, जिसके जरिए केंद्रशासित प्रदेश को स्पेशल स्टेटस मिल पाए. 

इसकी वैधता को लेकर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया है.