Lal Krishna Advani: राम मंदिर के लिए आडवाणी ने लिया था सत्ताधीशों से लोहा, जानिए संघर्ष की कहानी

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट कर जानकारी साझा की है.

आडवाणी ने लगभग साल 1990 में हिन्दुओं को एकजुट कर राम मंदिर निर्माण की मांग के लिए गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली थी.

सोमनाथ से ये रथ यात्रा 25 सितम्बर को निकली थी. इस यात्रा को अलग-अलग प्रदेशों से होते 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या पहुंचना था.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस यात्रा के सारथी थे. तब वह गुजरात भाजपा के संगठन महामंत्री थे.

वहीं, जेपी आंदोलन से निकले नेता लालू प्रसाद यादव को इस यात्रा की चिंता सताने लगी थी. उनको चिंता थी कि उनका वोट बैंक कहीं खिसक न जाए. उनकी आरक्षण वाली राजनीति भी ढीली पड़ने लगी थी.

तब लालू यादव ने 'सेक्युलरिज्म' शब्द का सहारा लिया. इस बहाने आडवाणी ने इस रथ यात्रा के पहिए रोक दिए. इसका प्रभाव ऐसा हुआ कि वीपी सिंह की सरकार गिर गई.

दरअसल, रथ यात्रा का प्रभाव ऐसा था कि रथ जहां से भी निकलता, वहां फूलों की बरसात होती थी. जनता वहां की मिट्टी को अपने माथे पर लगाती थी.

तब इस यात्रा की जिम्मेदारी पीएम मोदी पर थी. हेमंत शर्मा ने अपनी किताब 'युद्ध में अयोध्या' में पीएम मोदी को रथ यात्रा का रणनीतिकार और शिल्पी भी बताया है.

बता दें कि रथ यात्रा का मार्ग और कार्यक्रम की औपचारिक जानकारी 13 सितंबर, 1990 को सबसे पहले मोदी ने दी थी. तब इस यात्रा को रोककर तथाकथित सेक्यूलर लोग समुदाय विशेष का मसीहा बनना चाहते थे. 

इस दौरान 19 अक्टूबर साल 1990 को 'इंडियन एक्सप्रेस' के सुंदरनगर गेस्ट हाउस में बैठक हुई. इसमें शामिल होने धनबाद में रथ यात्रा छोड़कर आडवाणी पहुंचे थे. ये बैठक तत्कालीन पीएम वीपी सिंह की पहल पर हुई थी.

तब आडवाणी ने कहा कि वे सरकार नहीं गिराना चाहते. अगर सरकार अध्यादेश लाकर विवादित ढांचे के आस-पास की जमीन विहिप या उसके प्रतिनिधि को सौंपती है, तो भाजपा इसका समर्थन करेगी.

कहते हैं कि तब वीपी सिंह ये नहीं चाहते थे मुलायम सिंह अकेले मुस्लिमों का मसीहा बनें. तब उनके कहने पर लालू यादव ने बिहार में ही आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया.

रथ यात्रा का प्रभाव ऐसा था कि देश भर से कारसेवक अयोध्या पहुंचने लगे. ये कारसेवक इस बात पर अड़े थे कि मंदिर निर्माण होकर रहेगा. चाहे प्रदेश सरकार कितना भी जोर लगा ले.

इसके बाद 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चली. इसमें कोठारी बन्धु समेत कई कारसेवक को मार दिया गया. एक कारसेवक ने मरते समय अपने खून से सड़क पर 'जय श्री राम' लिखा. कहते हैं तब सरयू का जल खून से लाल था.

इस स्थिती में करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के साथ आडवाणी खड़े थे. दूसरी तरफ वीपी सिंह, मुलायम सिंह और लालू यादव मुस्लिम वोटों के लिए खिलाफ खड़े थे.

रख यात्रा के 2 साल बाद कारसेवकों ने बाबरी का विवादित ढ़ांचा गिरा दिया. साथ ही कोर्ट में जमीन के लिए लड़ाई चलती रही. वहीं, आज अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर चुका है.

22 जनवरी 2024 को पीएम मोदी ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की. इसके बाद 23 जनवरी को भक्तों के लिए रामलला विराजमान हैं. कोई भी दर्शन के लिए जा सकता है.