Air Pollution: सिंगापुर यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में करोडो़ं लोगों की मौत जहरीली हवा से हुई है. वहीं, मौसम में आए बदलावों ने जहरीली हवा से होने वाली मौतों में करीब 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. अध्ययन के मुताबिक, जहरीली हवा की चपेट में सबसे ज्यादा एशिया के देश हैं. वायु प्रदूषण के चलते पिछले 40 बरसों में दुनियाभर में तकरीबन 13 करोड़ लोगों की जानें गई हैं.
सिंगापुर की नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ने एक रिपोर्ट शेयर किया है. यूनिवर्सिटी के स्टडी के मुताबिक, साल 1980 से 2020 के बीच दुनियाभर में कुल 13 करोड़ 50 लाख के करीब लोगों की जान जहरीली हवा की वजह से हुई है. इन 40 वर्षों में हवा प्रदुषित होने की वजह कार्बन उत्सर्जन, जंगलों में आग लगने जैसी घटनाएं हैं.
नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी रिसर्चर्स का मानना है कि एल निनो और दूसरे मौसम संबंधी वजहों ने भी वायु प्रदूषण के प्रभाव को और अधिक खतरनाक बनाया है. रिपोर्ट के मुताबिक, हवा 2.5 पर जाते ही जहरीली हो जाती है. पीएम 2.5 यानी जहरीली हवा के साथ छोटे-छोटे कण सांस के जरिये शरीर में चले जाते हैं, जो फिर सेहत को काफी नुकसान पहुंचाते हैं.
लाइलाज होती जा रहीं बीमारियां
सिंगापुर की नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी द्वारा जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदुषण के चलते लोग बहुत कम उम्र में ही अपनी जान गंवा रहे हैं. वायु प्रदुषण के चलते लोगोें को हार्ट अटैक, फेफड़े की बीमरी, कैंसर और दूसरे घातक रोग हो जा रहे हैं. इन बिमारियों का इलाज किया जा सकता था. लेकिन ये बीमारियां वायु प्रदूषण के बुरे असर के बाद लाइलाज होती जा रहीं हैं.
इन देशों का बुरा हाल
सिंगापुर की नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी द्वारा जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदुषण यानी पीएम 2.5 की वजह से सबसे ज्यादा मौतें एशिया में हुई है. 20 साल के भीतर जहरीली हवा के चलते एशिया में तकरीबन 10 करोड़ लोगों की जानें गई हैं. इसमें भी सबसे ज्यादा मौतें चीन और भारत में हुई हैं. वायु प्रदुषण के चलते भारत, चीन से इतर पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और जापान में भी बड़े पैमाने पर लोगों की समय से पहले मौतें हुई हैं. जहां मरने वाले लोगों की संख्या 20 लाख से लेकर 50 लाख तक के बीच है.