Bangladesh News: बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार का गठन हो गया है. बांग्लादेश में जारी सियासी संकट के बीच अंतरिम सरकार तो बन गई है लेकिन आने वाले समय में चुनाव भी होने हैं. संविधान के मुताबिक देश में तीन महीने में चुनाव होना चाहिए. लेकिन BNP नेता ने जो संकेत दिया है, उससे माना जा रहा है कि यहां अंतरिम सरकार का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है.
बढ़ाया जा सकता है कार्यकाल
भले ही बांग्लादेश में अब कहने के लिए एक सरकार है लेकिन इस अंतरिम सरकार को शुरुआत से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इन सबके बीच बीएनपी के महासचिव मिर्ज़ा इस्लाम आलमगीर का अंतरिम सरकार को लेकर बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में प्रावधान है कि उन्हें (अंतरिम सरकार को) 90 दिन दिए जाने चाहिए. लेकिन विशेष परिस्थितियों में अगर उन्हें इसकी ज़रूरत है तो इसे बढ़ाया जा सकता है.
2030 का विजन
मिर्ज़ा इस्लाम आलमगीर ने कहा कि हमने हमेशा स्पष्ट रूप से कहा है कि हमारा विज़न क्या है. हमने कहा है कि हमने इसे 2030 का विज़न दिया है. हमने कहा है कि निश्चित रूप से देश में सुधार होंगे. मुख्य रूप से न्यायिक सुधार, संवैधानिक सुधार और प्रशासनिक सुधार किए जाएंगे.
भ्रष्टाचार को मिटाने की कोशिश…
मिर्ज़ा इस्लाम आलमगीर ने कहा कि हम भ्रष्टाचार को मिटाने की कोशिश करेंगे, जो मुख्य कारणों में से एक है. हम लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों को सही और शुद्ध रूप से बहाल करेंगे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी और लोग किसी भी राजनीतिक पार्टी या राजनीतिक रैलियों में शामिल होने के लिए स्वतंत्र होंगे और उनके लोकतांत्रिक अधिकार स्थापित होंगे. हम एक उदार लोकतांत्रिक बांग्लादेश और समृद्ध बांग्लादेश देखना चाहते हैं.
#WATCH | General Secretary of the Bangladesh Nationalist Party (BNP), Mirza Islam Alamgir says, “In our constitution that is a provision that 90 days should be given to them (interim govt). But under special circumstances, this can be increased if they need it… We have always… pic.twitter.com/SJ14whUvRh
— ANI (@ANI) August 13, 2024
न्यायपालिका का राजनीतिकरण
हमें विश्वास है कि हम ऐसा करने में सक्षम होंगे. दुर्भाग्य से पूर्व प्रधानमंत्री की सरकार ने पूरी न्यायपालिका का राजनीतिकरण कर दिया और लोगों ने उनके खिलाफ़ काफ़ी नाराज़गी जताई. लोगों, वकीलों, नागरिक समाज और छात्रों में गुस्सा था. इसलिए स्वाभाविक रूप से उन्हें कुछ कड़वे अनुभव हुए. इसलिए मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को इस्तीफा देना पड़ा.