Bangladesh Violence: हिंसा की आग में धूं-धूं कर जला बांग्लादेश,स्वदेश लौटे 4,500 से अधिक भारतीय छात्र

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Bangladesh Violence: इस समय पूरा बांग्‍लादेश हिंसा के जद में हैं. आरक्षण के विरोध में भड़की हिंसा में अब तक 133 लोगों की जान जा चुकी है. बांग्‍लादेश में जारी हिंसा में बड़ी संख्‍या में भारतीय छात्र भी फंसे हुए हैं. रविवार को विदेश मंत्रालय ने बताया कि बांग्‍लादेश में हिंसक झड़पों के बीच 4500 से अधिक भारतीय छात्र स्‍वदेश लौट आए है. भारतीय छात्रों के साथ नेपाल के 500 छात्र, भूटान के 38 छात्र और मालदीव का एक छात्र भी भारत आया है.

विदेश मंत्रालय ने कहा कि बांग्लादेश में भारतीय उच्चायोग भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिए स्थानीय अधिकारियों के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं. कहा कि अब तक 45 सौ से अधिक भारतीय छात्र अपने देश लौट आए हैं. उच्चायोग भारतीय नागरिकों के सीमा प्रवेश स्थल तक सुरक्षित यात्रा की व्यवस्था में लगा है.

भारतीयों की कर रहे हैं सहायता

विदेश मंत्रालय ने कहा कि ढाका में भारतीय उच्चायोग और चटगांव, सिलहट, राजशाही और खुलना में सहायक उच्चायोग भारतीय लोगों की भारत लौटने में सहायता कर रहे हैं. भारतीय नागरिकों के लिए विदेश मंत्रालय बंदरगाहों और एयरपोर्ट पर सुचारू मार्ग सुनिश्चित करने के लिए संबंधित भारतीय अधिकारियों के साथ संपर्क में है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को बयान दिया था कि बांग्लादेश में करीब 15,000 भारतीय नागरिक हैं, जिसमें 8,500 छात्र हैं.

जानें बांग्‍लादेश के सुप्रीम कोर्ट का फैसला 

बता दें कि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने अब इस पूरे मामले पर फैसला सुनाते हुए सरकारी नौकरियों में आरक्षण घटा दिया. इसे सरकार के लिए बड़ी हार के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि सरकार आरक्षण पर अपने फैसले को वापस लेने के लिए तैयार नहीं थी. न्‍यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि 93 प्रतिशत सरकारी नौकरियां योग्यता आधारित सिस्‍टम के आधार पर आवंटित की जाएं और शेष 7 प्रतिशत 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में लड़ने वालों के रिश्तेदारों तथा अन्य श्रेणियों के लिए छोड़ी जाएं. पहले युद्ध लड़ने वालों के रिश्तेदारों के लिए नौकरियों में 30 फीसदी तक आरक्षण था. लेकिन शीर्ष अदालत ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को छात्रों के लिए बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है.

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