अब भारतीय ज्ञान की चोरी पर लगेगा लगाम… जिनेवा में बायोपाइरेसी संधि को मिली मंजूरी

Raginee Rai
Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Must Read
Raginee Rai
Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Biopiracy Treaty: भारतीय समेत अन्‍य तमाम देश, जिनके पास अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही एक अलग चिकित्‍सा पद्धति है, उनके लिए खुशखबरी है. लोगों के बीच आगे बढ़ रहे परंपरागत ज्ञान का अब बिना सहमति के इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा. इसके लिए दुनियाभर के 190 से अधिक देश एक नई संधि के लिए सहमति जताई है. इस संधि के बाद बायोपाइरेसी पर रोक लगाई जा सकेगी. बता दें कि जेनेवा में 13 से 24 मई के बीच चले एक राजनयिक सम्मेलन में इस पर सहमति बनी है. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्‍या है बायोपाइरेसी और इससे किस तरह से फायदा होगा.

क्‍या है बायोपाइरेसी

जर्मन वेबसाइट डी डब्लू की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बायोपाइरेसी उस ज्ञान के सहमति के बिना इस्तेमाल को कहते हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के बीच लगातार आगे बढ़ता रहता है. इसे किसी पौधे या फसल के औषधीय गुणों की जानकारी और उसका इस्‍तेमाल से भी जोड़ सकते हैं.बायोपाइरेसी समझौते या कानून के माध्‍यम से इस तरह के नियम बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि कोई भी पारंपरिक ज्ञान के आधार पर किसी तरह की खोज को बिना उस समुदाय की सहमति के पेटेंट ना करा पाए.

अमेरिका ने दे दिया था हल्दी का पेटेंट

बायोपाइरेसी को आप एक अमेरिकी घटना से बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. साल 1994 में अमेरिका की मिसिसिपी यूनिवर्सिटी के दो रिसर्च स्कॉलर सुमन दास और हरिहर कोहली को यूएस के पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस (PTO) ने हल्दी के एंटीसेप्टिक गुणों के लिए पेटेंट दे दिया था. जब इसकी भनक भारत को लगी तो खूब विवाद हुआ. हो भी क्यों न, सदियों से भारत में हल्दी का इस्तेमाल दवा के तौर पर किया जाता रहा है. हल्‍दी का जिक्र आयुर्वेद में भी है. ऐसे में सवाल है कि हल्दी का पेटेंट अमेरिका कैसे दे सकता है?

भारत ने किया केस

अपने इस प्राचीन ज्ञान को बचाने के लिए भारत की काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) ने हल्दी के मुद्दे पर केस कर दिया. इसके बाद साल 1997 में अमेरिका के पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस ने दोनों रिसर्च स्कॉलर का पेटेंट रद्द कर दिया.

जिनेवा में चर्चा के बाद दी गई मंजूरी

इसी तरह के मामलों को सुलझाने के लिए और किसी के भी पारंपरिक ज्ञान या चिकित्सा पद्धति की लुटने से बचाने के लिए ग्‍लोबल लेवल पर बायोपाइरेसी समझौते पर जिनेवा में लंबी चर्चा हुई. इसके बाद बायोपाइरेसी संधि को मंजूरी दे दी गई है. दरअसल, विभिन्न समुदायों और समाजों में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे बढ़ने वाले पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए गठित की गई संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूआईपीओ) का मुख्यालय जिनेवा में स्थित है.

बायोपाइरेसी संधि से क्या बदलेगा?

190 से अधिक देशों ने बायोपाइरेसी से निपटने और औषधीय पौधों आदि आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े पेटेंट को विनियमित करने के लिए बायोपाइसेरी नई संधि पर सहमति जताई है, जिसमें मुख्‍य रूप से ऐसे पौधे हैं, जिनके इस्तेमाल में पारंपरिक ज्ञान शामिल है. बायोपाइरेसी संधि से कोई भी व्यक्ति दूसरे समुदाय की सहमति के बिना ऐसी जानकारी का पेटेंट नहीं करा सकेंगा, जो उस समुदाय में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा चला आ रहा है.

ये भी पढ़ें :- MP News: नर्सिंग घोटाले में सीएम मोहन यादव का बड़ा एक्शन, अब JEE-NEET के तर्ज़ पर देनी होगी परीक्षा

 

Latest News

Manipur Violence: ‘हम कार्रवाई करेंगे…’, CM एन बीरेन सिंह बोले- ‘वे सच्चे हैं, हम उनके आंदोलन का समर्थन करते हैं’

Manipur Violence: सरकार निर्दोष लोगों की हत्या के खिलाफ आंदोलन का समर्थन करती है कुछ "गिरोहों" ने लोकतांत्रिक आंदोलन...

More Articles Like This