UNHRC Report: कनाडा को लेकर यूएनएचआरसी की नई रिपोर्ट आई है, जिसमें दुनिया में मानवाधिकारों में अग्रणी बनने का दावा करने वाले कनाडा की पोल खुल गई है. रिपोर्ट में कनाडा में अस्थाई विदेशी कामगार कार्यक्रम (TFWP) को आधुनिक गुलामी के लिए प्रजनन स्थल बताया गया है. कार्यक्रम को कृषि और देखभाल जैसे क्षेत्रों में श्रम की मांगों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है. हालांकि यह मजदूरों की कनाडा में रहने और काम करने के कानूनी अधिकार को सीधे उनके नियोक्ताओं से जोड़ता है.
श्रमिकों द्वारा शिकायत करना मुश्किल
नियोक्ता-विशिष्ट व्यवस्था एक अहम शक्ति का असंतुलन पैदा करती है. इससे श्रमिकों द्वारा शोषण या दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि उन्हें निर्वासन का डर रहता है. कनाडा में कम वेतन वाले अस्थायी विदेशी कर्मचारियों की संख्या साल 2016 में 15,817 थी, जोकि 2023 में बढ़कर 83,654 हो गई है. टीएफडब्ल्यू के तहत प्रवासी श्रमिक अक्सर खराब कामकाजी स्थितियों, स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुंच और कम कानूनी सुरक्षा के अधीन होते हैं.
ये कमियां आई सामने
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) की ‘दासता के समसामयिक स्वरूपों पर विशेष प्रतिवेदक’ रिपोर्ट में यूएन इन्वेस्टिगेटर टोमोया ओबोकाटा ने कहा कि कार्यक्रम की संरचना श्रमिकों को स्वतंत्र तौर पर अपना नियोक्ता बदलने से रोकती है और उन्हें प्रभावी ढंग से शोषणकारी स्थितियों में फंसाती है. यह तब और भी बढ़ जाता है जब उन्होंने किसी तीसरे पक्ष से उधार लेना पड़ता है. ऐसे में वह किसी भी कीमत पर अपनी नौकरी को छोड़ना नहीं चाहते हैं. रिपोर्ट में आगे बताया गया कि संघीय सेटलमेंट सर्विस तक पहुंच की कमी के वजह से प्रवासी अक्सर अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानते हैं.
निरीक्षण की कमी भी है कारण
UNHRC रिपोर्ट में कहा गया कि कई लोग मदद देने वाले नागरिक समाग संगठनों से अलग-थलग है, जिससे उन्हें अपने नियोक्ताओं की दया पर रहना पड़ता है. व्यापक निरीक्षण और कार्यान्वयन की कमी से स्थिति और भी दैनिय हो गई है. रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि निरीक्षणों का एक अहम हिस्सा आभासी होता है और औचक निरीक्षण दुर्लभ होते हैं, मुख्य रूप से देखभाल जैसे क्षेत्रों में. कानून की ढीली पकड़ से नियोक्ताओं को पता होता है कि उन्हें पकड़ा नहीं जा सकता, जिस वजह से वह अपनी जिम्मेदारियों से भाग सकते हैं. कनाडाई सरकार ने टीएफडब्ल्यूपी में कुछ सुधार किए हैं. लेकिन आलोचकों के मुताबिक यह पर्याप्त नहीं है.
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