Chabahar Deal Explainer: पिछले दिनों से ही चाबहार बंदरगाह काफी सुर्खियों में है. अगर इसको मैप के सहारे देखने की कोशिश की जाए तो यह समुद्र से लगा एक छोटा हिस्सा है. हालांकि पिछले कुछ दिनों से ये काफी चर्चा का विषय है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस छोटे से हिस्से को लेकर भारत से ईरान की डील हुई है. ये पहली बार है जब भारत विदेश में मौजूद किसी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में लेने जा रहा है.
ईरान के साथ भारत की इस डील ने दुनिया के कई देशों की नींद उड़ा रखी है. इस डील के बाद चीन से लेकर अमेरिका और पाकिस्तान तक परेशान नजर आ रहे हैं. आलम यह है कि अमेरिका तो इस कदर परेशान हो गया है कि उसने भारत पर प्रतिबंध लगाने तक की धमकी दे डाली है. इन सब के बीच आपको यह जानना चाहिए कि आखिर चाबहार इतना अहम क्यों है. जिसको लेकर दुनिया के तमाम देश परेशान हो रहे हैं. इसी के साथ हम आपको यह भी बताएंगे कि भारत और ईरान के बीच हुई इस डील से दुनिया के देशों को इतनी दिक्कत क्यों हो रही है.
जानिए भारत और ईरान की डील क्या है?
हाल ही में भारत और ईरान ने चाबहार के शाहिद बेहश्ती बंदरगाह के टर्मिनल के संचालन के लिए एक समझौता किया है. यह समझौता आगामी 10 सालों के लिए है. इस बात की जानकारी ईरान में स्थित भारतीय दूतावास की ओर से पोस्ट कर के दी गई. इस डील पर इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान के पोर्ट्स एंड मेरिटाइम ऑर्गनाइजेशन साइन हैं.
आपको जानना चाहिए कि ये पहला मौका है जब भारत विदेश में मौजूद किसी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में लेगा. ईरान के दक्षिणी तट ये चाबहार पोर्ट है. यह पोर्ट सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में आता है. इस बंदरगाद का विकास भारत और ईरान मिलकर कर रहे हैं.
इस पोर्ट से भारत को क्या होगा फायदा?
जानकारी दें कि पहले भारत को मध्य एशिया तक व्यापार करने के लिए पाकिस्तान के रास्ते का सहारा लेना पड़ता था. इतना ही नहीं अफगानिस्तान तक भी कोई सामान भेजना है तो भारत को पाकिस्तान के रास्ते का सहारा लेना पड़ता था. अब ईरान के साथ भारत का चाबहार को लेकर समझौता हुआ है. इसके बाद अब अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से भारत को व्यापार करने के लिए समुद्र में एक नया रूट नया मिल जाएगा. अब भारत को पाकिस्तान के रास्तों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा. इतना ही नहीं चाबहार पोर्ट भारत के लिए राजनीतिक और कूटनीतिक तरीके से भी अहम है.
भारत से डील अमेरिका क्यों परेशान?
भारत और ईरान के बीच हुई चाबहार पोर्ट को लेकर डील की खबर सामने आने के बाद अमेरिका की बौखलाहट सामने आई है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका ने मंगलवार को चेतावनी दी थी कि तेहरान के साथ व्यापारिक डील पर विचार करने वाले “किसी को” भी प्रतिबंधों के संभावित जोखिम के बारे में पता होना चाहिए. अमेरिका विदेश विभाग के एक प्रवक्ता द्वारा की गई प्रेस ब्रीफिंग में कहा गया कि मैं बस यही कहूंगा…ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और इनको जारी रखा जाएगा. जब उनसे यह पूछा गया कि इन प्रतिबंधों के दायरे में क्या भारतीय कंपनियां भी आ सकती हैं, इस पर वेदांत पटेल ने कहा कि जो कोई भी ईरान के साथ व्यापारिक सौदे पर विचार कर रहा है, उस पर संभावित जोखिम का खतरा बना रहेगा.
भारत की ईरान से नजदीकी के कारण अमेरिका परेशान
आपको जानना चाहिए कि भारत और ईरान के बीच बढ़ती रिश्तों की गहराई से अमेरिका काफी परेशान होने लगा है. विदेशी मामलों के जानकारों की मानें तो अमेरिका यह नहीं चाहता है कि दुनिया का कोई भी देश ईरान के साथ किसी भी तरीके का व्यापारिक संबंध रखे. वहीं, ईरान के साथ भारत की दोस्ती से भी अमेरिका परेशान है और वह नहीं चाहता है कि इस दोस्ती से भारत को कोई भी फायदा हो.
इसके पीछे की वजह मानी जाती है कि अमेरिका को लगता है कि अगर भारत और ईरान की दोस्ती बढ़ती है तो भारत अमेरिका के दुश्मनों के गुटों के ज्यादा करीब होता चला जाएगा.
चाबहार बंदरगाह भारत के लिए इतना क्यों जरूरी है
अगर देखा जाए तो चाबहार बंदरगाह भारत के लिए अपनी लोकेशन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. चाबहार बंदरगाह ईरान में ओमान की खाड़ी में स्थित है. यह पोर्ट पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से केलव 72 किमी ही दूर है. ये बंदरगाह एक मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्टेशनल प्रोजेक्ट है. ये प्रोजेक्ट हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर और रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक सीधे जोड़ता है.
भारत की डील से चीन और पाकिस्तान भी परेशान
ईरान और भारत के बीच हुए चाबहार बंदरगाह के समझौते से न केवल अमेरिका बल्कि भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान भी परेशान है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस चाबहार बंदरगाह को पाकिस्तान के ग्वादर और चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के जवाब के रूप में देखा जा रहा है. अगर मीडिया रिपोर्ट्स की मानें को चाबहार बंदरगाह का प्रयोग कर के भारत पाकिस्तान को लूप से बाहर रखते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के दूसरे देशों से सीधे व्यापार करने में सफल होगा. इससे पाकिस्तान की महत्ता धीरे धीरे कम होने लगेगी. यही वजह है कि इस डील से पाकिस्तान को मिर्ची लग रही है.
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