नमक से चीन का बड़ा कारनामा, तैयार किया दुनिया का पहला थोरियम मोल्टन सॉल्ट रिएक्टर

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

China: खाने का स्‍वाद बढ़ाने के लिए जिस नमक का हम इस्‍तेमाल करते हैं, उसी तरह के पिघले हुए नमक से चीन ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. बीजिंग ने दुनिया का पहला थोरियम मोल्टन सॉल्ट न्यूक्लियर रिएक्टर तैयार किया है. इसमें न केवल बिजली बन रही है, बल्कि अब उसमें चलते-चलते नया ईंधन भी डाला जा चुका है. ये किसी कार में चलते समय पेट्रोल भरवाने जैसा है. न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी में ऐसा पहली बार हुआ है. गॉबी रेगिस्‍तान के किनारे बसे चीन के एक इलाके में ये रिएक्‍टर बना है.

जानिए क्‍या है थोरियम मोल्टन सॉल्ट रिएक्टर

थोरियम मोल्‍टन सॉल्‍ट रिएक्‍टर छोटा-सा है, लेकिन ताकतवर, 2 मेगावॉट की थर्मल एनर्जी बनाता है. इसमें आम न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह यूरेनियम नहीं, बल्कि थोरियम नाम का एक खास रेडियोधर्मी धातु जलाया जाता है, जो पृथ्‍वी में खूब पाया जाता है और ज्यादा खतरनाक भी नहीं होता. अब ये थोरियम, नमक के साथ मिलाकर एक खास किस्म का घोल बनता है, जो ना केवल ईंधन होता है, बल्कि उसी से ठंडक भी मिलती है. और खास बात ये है कि ये रिएक्टर हाई टेम्परेचर पर भी बहुत ठंडे दिमाग से काम करता है यानी ब्लास्ट या मेल्टडाउन जैसा खतरा ना के बराबर है.

थोरियम में ऐसा क्या है खास?

थोरियम, यूरेनियम के मुकाबले काफी सुरक्षित है. ज्यादा मात्रा में मिलता है, और इससे बनने वाला न्यूक्लियर वेस्ट भी बेहद कम होता है. इसके अलावा इससे जो बाइ-प्रोडक्ट निकलते हैं, उन्हें न्यूक्लियर हथियारों में बदला जा सकता है. यानी चीन ने ना केवल एक सुरक्षित रिएक्टर बनाया है, बल्कि परोक्ष रूप से अपनी ताकत को भी बढ़ा लिया है. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इनर मंगोलिया में जो थोरियम की खानें हैं, वो चीन की बिजली की आवश्‍यकताओं को हजारों साल तक पूरा कर सकती हैं और वो भी बिना ज़्यादा गंदगी किए.

अमेरिका छोड़ गया, चीन पकड़ लाया

जानकारी दें कि ये तकनीक कोई नई चीज नहीं है. संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका ने 1960 के दशक में इस पर रिसर्च की थी. यहां तक कि मोल्टन सॉल्ट रिएक्टर भी बना लिया था. लेकिन फिर उन्होंने इसे छोड़कर यूरेनियम वाला रास्ता अपना लिया. चीन के वैज्ञानिक शू होंगजिये ने बताया कि अमेरिका ने जो डॉक्युमेंट्स और रिसर्च छोड़े थे, उनकी टीम ने उन्हें पढ़ा, समझा और दोबारा से प्रयोग शुरू किए.

साल 2018 में चीन ने इस रिएक्टर को बनाना शुरू किया और कुछ ही सालों में टीम 400 से अधिक साइंटिस्ट्स की हो गई. 17 जून 2024 को चीन के इस रिएक्टर ने फुल पावर पर काम करना शुरू कर दिया. और मज़ेदार बात यह रही कि 57 साल पहले ठीक इसी तारीख को चीन ने अपना पहला हाइड्रोजन बम परीक्षण किया था.

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