Cop-29: 300 बिलियन डॉलर बहुत कम और दूर की कौड़ी… भारत ने जलवायु वित्त पैकेज को किया खारिज

Raginee Rai
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Cop-29: अजरबैजान की राजधानी बाकू में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह ‘ग्लोबल साउथ’ देशों की आवाज है. भारत ने सम्‍मेलन में ग्‍लोबल साउथ के हितों की मजबूती से रक्षा की. रविवार को भारत ने 2035 तक 300 अरब डॉलर के जलवायु वित्‍त पैकेज को खारिज कर दिया. भारत ने इस पैकेज  को ‘बहुत कम व बहुत दूर की कौड़ी’ बताया.

वित्तीय पैकेज बेहद  कम 

भारत ने कहा कि ग्लोबल साउथ के लिए वित्तीय पैकेज का 300 अरब अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा उस 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से काफी कम है, जिसकी मांग ‘ग्लोबल साउथ’ देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पिछले तीन वर्ष से कर रहे हैं. इस विरोध के बाद ग्‍लोबल साउथ में पीएम नरेंद्र मोदी का सम्मान और भी बढ़ गया है.

‘ग्लोबल साउथ’ का संदर्भ विश्‍व के कमजोर या विकासशील देशों के लिए दिया जाता है. आर्थिक मामलों के विभाग की सलाहकार चांदनी रैना ने भारत की ओर से बयान में कहा कि उन्हें समझौते को अपनाने से पहले अपनी बात नहीं रखने दी गई, जिससे प्रक्रिया में उनका भरोसा कम हो गया है. रैना ने कहा कि यह समावेशिता का पालन न करने, देशों के रुख का सम्मान न करने जैसी कई घटनाओं की पुनरावृत्ति है.

भारत ने लक्ष्य को बताया बहुत छोटा

उन्‍होनें से कहा कि, हमने अध्यक्ष को सूचित किया था, हमने सचिवालय को सूचित किया था कि हम कोई भी निर्णय लेने से पहले बयान देना चाहते हैं, लेकिन यह सभी ने देखा कि यह सब कैसे पहले से तय करके किया गया. रैना निर्णय पर निराशा जताई. उन्‍होंने कहा कि यह लक्ष्य बहुत छोटा और बहुत दूर की कौड़ी है. उन्होंने जोर देकर कहा कि इसे 2035 तक के लिए तय किया गया है, जो बहुत दूर की बात है.

चांदनी रैना ने कहा कि अनुमान बताते हैं कि हमें 2030 तक प्रति वर्ष कम से कम 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की जरूरत होगी. 300 अरब डॉलर विकासशील देशों की आवश्‍यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं हैं. यह CBDR (साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारी) और समानता के सिद्धांत के साथ अनुरूप नहीं है.

कक्ष में भारत के लिए बजने लगी तालियां

इस दौरान राजनयिकों, नागरिक समाज के सदस्यों और पत्रकारों से भरे कक्ष में भारतीय वार्ताकार को जबरदस्‍त समर्थन मिला. विश्‍वमंच पर भारत के लिए तालियां बजने लगीं. चांदनी रैना ने कहा कि हम इस प्रक्रिया से बहुत नाखुश और निराश हैं और इस एजेंडे को अपनाए जाने पर विरोध जताते हैं. वहीं नाइजीरिया ने भारत का समर्थन करते हुए कहा कि 300 बिलियन डॉलर का जलवायु वित्त पैकेज एक ‘‘मजाक’’ है. मलावी और बोलीविया ने भी भारत का साथ दिया.

प्रस्ताव को किया अस्वीकार

सलाहकार रैना ने कहा कि प्रस्तावित परिणाम विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन के मुताबिक ढलने की क्षमता को और अधिक प्रभावित करेगा, साथ ही जलवायु लक्ष्य संबंधी उनकी महत्वाकांक्षाओं और विकास पर अत्यधिक प्रभाव डालेगा. उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान स्वरूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता. विकासशील देशों के लिए यह नया जलवायु वित्त पैकेज या नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) 2009 में निर्धारित किए गए 100 अरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य का स्थान लेगा.

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