Asteroid in Russia: पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा अंतरिक्ष से आने वाले उल्कापिंड हैं. एक ऐसा ही उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरा है. रूस के यामुटिया में 3 दिसंबर को लगभग 70 सेमी व्यास वाला एक एस्टेरॉयड खोजे जाने के कुछ ही घंटों बाद गिरा है. पृथ्वी के वायुमंडल में आने से 12 घंटे पहले ही इस चीज के बारे में पता लगाया गया था, जो एक चमकदार आग का गोला बन गई. कई लोगों ने इस उल्कापिंड को गिरते हुए देखा.
वायुमंडल में प्रवेश करते ही टूट गया एस्टेरॉयड
दुनिया भर के कई वैश्विक वेधशालाओं के खगोलविदों ने काफी सटीकता के साथ एस्टेरॉयड के टक्कर की भविष्यवाणी की. जैसे ही यह धरती के वायुमंडल में प्रवेश किया, एस्टेरॉयड कई टुकड़ों में टूट गया. अनुमान के अनुसार, एस्टेरॉयड की चट्टाने सुदूर वन क्षेत्र में बिखर गईं. सौभाग्य से इसके आकार और स्थान के वजह से किसी चोट या बड़े नुकसान की जानकारी नहीं सामने आई है. इस एस्टेरॉयड से पहले उल्लेखनीय तौर पर 2022 WJ, 2023 CX1, और 2024 BX1 जैसे उल्कापिंड पृथ्वी पर गिर चुके हैं.
Asteroid #C0WEPC5 in Olekminsk, Russia pic.twitter.com/iOnUvRf6bI
— Kirill Bakanov (@WeatherSarov1) December 3, 2024
बढ़ी एस्टेरॉयड खोजने की तकनीक
यह घटना हमारे सौर मंडल की गतिशील प्रकृति और नियर अर्थ ऑब्जेक्ट (NEO) की निगरानी के महत्व को दर्शाती है. NASA और यूरोपीय स्पेस एजेंसी जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों ने अपनी ट्रैकिंग क्षमताओं को बढ़ाया है, जिससे उल्कापिंड के प्रभाव के बारे में समय पर अलर्ट मिल सके. यह घटना 2024 में खोजा गया चौथा बड़ा प्रभाव है, जो एस्टेरॉयड का पता लगाने वाली तकनीक में प्रगति को दर्शाता है.
BREAKING: Asteroid over Russia this morning.
Is this part of the alien invasion? pic.twitter.com/2Ivxc4W1yh
— TaraBull (@TaraBull808) December 3, 2024
रूस में पहले भी गिरा उल्कापिंड
आमतौर पर छोटे एस्टेरॉयड पृथ्वी पर आते वक्त आसमान में ही जल जाते हैं. रूस में हुई चेल्याबिंस्क उल्का घटना एक ऐतिहासिक संदर्भ है. अपेक्षाकृत छोटे आकार के बाद भी उस घटना के वजह से चोटें और क्षति हुई थी. 15 फरवरी 2013 को रूस के दक्षिणी यूराल क्षेत्र में एक उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में आया था. इसका व्यास करीब 18 मीटर था. 19 किलोमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से यह धरती पर गिरा. इस उल्कापिंड की रोशनी कुछ समय के लिए सूर्य से भी अधिक चमकदार दिखी. आसमान में इस उल्कापिंड के फटने से जमीन पर भारी नुकसान हुआ था.
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