DRDO’s Project Dhvani: दुनियाभर में सुपरपॉवर के रूप में जानें जाने वाला अमेरिका आज हाइपरसॉनिक मिसाइल बनाने के लिए जहां लंबे समय से संघर्ष कर रहा है, वहीं, आज तकनीकी क्षमता में दुनिया की दौड़ में पीछे समझे जाने वाला भारत 3-3 महामिसाइल बनाकर पूरी दुनिया को चुनौती दे रहा है.
तकनीकी क्षमता में भारत को आज दुनिया की अग्रणी सूची में गिना जाता है, जिसका श्रेय भारत के वैज्ञानिकों का जुनून और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) को दिया जाता है. DRDO के वैज्ञानिकों ने प्रोजेक्ट ध्वनि के तहत ऐसे हाइपरसॉनिक हथियार बनाए है, जिन्हें रोक पाना अब संभव नहीं है.
ध्वनि की गति से भी तेज होते हैं ये मिसाइल
दरअसल, ध्वनि की गति से पांच गुणा तेज यानी 6,200 प्रति घंटे की रफ्तार से उड़कर अपने लक्ष्य को भेदने वाले मिसाइलों को हाइपरसॉनिक मिसाइल कहा जाता है. इनकी तेज रफ्तार और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले खासियत के वजह से ही ये मिसाइले बेहद खतरनाक हो जाते हैं, जिसे किसी भी रडार द्वारा पकड़ा नहीं जा सकता है.
बता दें कि DRDO की यह हाइपरसॉनिक तकनीक पूरी तरह से स्वदेशी है. वहीं, हाइपरसॉनिक मिसाइल रॉकेट इंजन के जरिए लॉन्च होता है और वातावरण में 6 से 7 Mach की गति से उड़ता है. इसके अलावा 1,500 किलोमीटर से अधिक की रेंज में पेलोड ले जाने में सक्षम है.
भारतीय सेनाओं के लिए बेहद उपयोगी हाइपरसॉनिक मिसाइल
यह हाइपरसॉनिक मिसाइल भारत की तीनों सेना (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) के लिए बेहद ही उपयोगी है, इसमें मिसाइल में स्क्रैमजेट इंजन का इस्तेमाल होता है, जो उड़ान के दौरान मिसाइल की गति को बनाए रखता है. इसका एक सटीक उदाहरण भारत का ब्रह्मोस-2 है. बता दें कि DRDO अभी तीन अलग-अलग डिजाइनों पर काम कर रहा है.
चीन-पाकिस्तान की अब खैर नहीं
मालूम हो कि भारत ने एक बार गलती से पाकिस्तान की ओर एक ब्रह्मोस मिसाइल दाग दी थी, जिसे पाकिस्तान ट्रैक नहीं कर पाया था. वहीं, अब ब्रह्मोस-2 और प्रोजेक्ट ध्वनि की हाइपरसॉनिक मिसाइलों के सामने पाकिस्तान तो क्या चीन और अमेरिका भी बेबस दिखाई दे रहे है.
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