France: मिडिल ईस्ट में अस्थिरता बढ़ती जा रही है. पिछले साल शुरू हुए इजरायल-हमास जंग के बाद से तनाव लगातार जारी है. हमास के साथ ही लेबनान में भी इजरायली हमला जारी है. दुनिया के हर मंच पर इस बात को दोहराया जा रहा है कि यहां शांति कैसे लाई जाए. इसी क्रम में फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों शांति की कोशिश में जुटे हुए हैं. राष्ट्रपति मैक्रों लेबनान को सपोर्ट कर रहे हैं. पिछले दिनों मैक्रों ने इस मसले पर 70 वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय अधिकारियों सहित लेबनान के नेताओं से मुलाकात की थी. उन्होंने इस बात को दोहराया था कि लेबनान में संघर्ष विराम होना जरूरी है.
लंबी रणनीति में लगा फ्रांस
दरअसल, फ्रांस के राष्ट्रपति इजरायल और हिज्बुल्लाह दोनों को युद्ध से पीछे हटने के लिए मनाने की लंबी रणनीति में लगे हैं. इस दौरान उन्होंने पिछले हफ्ते अमेरिकी नेतृत्व के साथ ही ब्रिटिश और जर्मनी के नेताओं से मुलाकात की थी. साथ ही वो अरब और ईरान के नेतृत्व के साथ भी संपर्क में रहे हैं. राष्ट्रपति मैक्रॉन की दिलचस्पी के पीछे लेबनान के साथ फ्रांस के ऐतिहासिक संबंध एक प्रमुख कारण रहे हैं. बेरूत के साथ इन संबंधों के आधार पर वह हिजबुल्लाह और ईरान से संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि अमेरिका सीधे तौर पर ऐसा नहीं कर सकता.
इजरायल को हथियार न देने की मांग
बता दें कि बीते दिनों 7 अक्टूबर की घटना के साल पूरा होने से पहले मैक्रों के एक बयान ने इजरायल के पीएम नेतन्याहू को बेहद खफा कर दिया था. मैक्रों ने अपने पश्चिमी साथियों से गाजा में तनाव के लिए इजरायल को हथियार ना देने का आग्रह किया था. लेबनान और फ्रांस का साझा इतिहास रहा है और फ्रांस में लेबनान डायस्पोरा के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं.
फ्रांस के लिए मुश्किल भरी डिप्लोमेसी
राष्ट्रपति मैक्रों के लिए यह मुश्किल भरी डिप्लोमेसी पर चलने का मु्द्दा है. क्योंकि परंपरागत रूप से वो उन देशों के समूह में आते हैं जो इजरायल के साथी रहे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो लेबनान के जरिए अगर मिडिल ईस्ट में शांति को लेकर मैक्रों सक्रिय हैं तो इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि वो समझते हैं कि यदि इस जंग के कारण देश बिखर गया तो उसे फिर से खड़ा करने में पश्चिम का कोई दूसरा देश शायद आगे नहीं आएगा. ऐसे में लेबनान पर सक्रिय होना राष्ट्रपति मैक्रों की मजबूरी है.
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