India-Maldives Relation: शपथ लेते ही मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भारत का विरोध करना शुरू कर दिया. यहां तक की मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों को तुरंत देश छोड़ने का आदेश सुना दिया था. इसके साथ ही भारत के कट्टर दुश्मन चीन की शरण में चले गए. भारत समझाता रहा, लेकिन नहीं माने. उन्हें लगा कि सबकुछ चीन की मदद से वे हल कर लेंगे. लेकिन अब मुइज्जू को इस बात का एहसास हो चुका है कि वो भारत के बिना अपने देश का भविष्य निर्धारित नहीं कर सकते हैं. यही वजह है कि वो इस साल दूसरी बार भारत दौरे पर आए हैं.
दरअसल, भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को चीन की बातें रास नहीं नहीं आ रही हैं. मुइज्जू बार-बार भारत के चक्कर काट रहे हैं. पांच दिन के दौरे पर एक बार फिर वे नई दिल्ली आए हैं. आज वो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे.
अब सवाल यह है कि जिस इंसान ने भारत विरोधी बयान और इंडिया आउट कैंपेन चलाकर अपनी राजनीति की रोटियां सेकी हैं. उसे ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि इतनी जल्दी 2 बार भारत के दौरे पर आ गया. क्या चीन से जो उम्मीद लगाए थे, वो टूट गई या फिर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की कूटनीति कामयाब रही? आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे पूरा गणित…
मालदीव का टूरिज्म सेक्टर हुआ प्रभावित?
गौरतलब है कि मालदीव सरकार के कुछ मंत्रियों ने बीते साल पीएम मोदी पर अभद्र टिप्पणी की थी. उसके बाद से वहां पर घूमने जाने वाले भारतीयों की संख्या में भयानक गिरावट देखने को मिली. जिसका परिणाम यह हुआ कि मालदीव का टूरिज्म सेक्टर बूरी तरह प्रभावित हो गया. बताते चले कि मालदीव के इनकम का मुख्य सोर्स ही टूरिस्ट हैं. जब भारतीय पर्यटकों ने मालदीव जाना छोड़ा तो इसका असर वहां की विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा और वो लगभग 40 करोड़ डॉलर का ही रह गया है. जो मालदीव सरकार के लिए बड़ा झटका है.
भारत पर क्यों निर्भर है मालदीव?
बता दें कि भारत आज से 36 साल पहले यानी 1988 से ही मालदीव को मदद पहुंचा रहा है. डिफेंस और सिक्योरिटी सेक्टर में भी मालदीव भारत पर निर्भर है. इस संबंध को मजबूत करने के लक्ष्य से साल 2016 में भी एग्रीमेंट हुआ था. भारत मालदीवियन नेशनल डिफेंस फोर्स (MNDF) की डिफेंस ट्रेनिंग में काम आने वाले 70 फीसदी सामान देता है. बीते 10 सालों में MNDF के 1500 से ज्यादा सैनिकों ट्रेनिंग मिल चुकी है.
इसके अलावा कई बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट जैसे एयरपोर्ट्स और कनेक्टिविटी को तैयार करने में भारत ने मदद की है. ग्रेटर माले इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें भारत ने 50 करोड़ डॉलर की राशि दी है.
मालदीव में कैंसर अस्पताल को बनाने में भारत ने 52 करोड़ रुपये दिए हैं, जिसका नाम इंदिरा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल है.
शिक्षा की क्षेत्र में भी भारत की अहम भूमिका रही है. इसके तहत 1996 में भारत ने मालदीव में टेक्निकल एजुकेशन इंस्टीट्यूट को खड़ा करने में मदद की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत और मालदीव के बीच व्यापार चार गुना बढ़ा है, जो 17 करोड़ से बढ़कर 50 करोड़ डॉलर हो गया है.
मालदीव के लिए भारत जरूरी क्यों?
कुल मिलाकर अब मुइज्जू को समझ आ गया है कि मालदीव भारत पर कितना निर्भर है. चीन-तुर्की या कोई और मुल्क यह निर्भरता पूरी नहीं कर सकता. चीन बार-बार वादा तो करता है कि मदद करेगा, लेकिन आज तक एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी. चाहे भोजन हो, दवा हो या इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलमेंट इन सबके लिए मालदीव को भारत काी जरुरत है. विदेश मंत्री एस जयशंकर इसे अच्छी तरह से समझते हैं और मुइज्जू को भी इसे समझा चुके हैं. यह बात अब मुहइज्जू को पूरी तरह समझ आ चुकी है. यही वजह है कि मालदीव के राष्ट्रपति बार-बार भारत के दौरे पर आ रहे हैं.