India-Srilanka: श्रीलंका में नई सरकार बनने के बाद पहली बार कोलंबो पहुंचे एस जयशंकर, इन मुद्दों पर हो सकती है बात

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

 India-Srilanka: श्रीलंका में नई सरकार का गठन होने के बाद आज पहली बार भारतीय विदेश मंत्री डा. एस जयशंकर कोलंबो पहुंचे हैं. श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में अनुरा कुमार दिसानायके के शपथ लेने के एक पखवाड़े से भी कम समय बाद द्वीप राष्ट्र के नेतृत्व से मुलाकात करने के लिए एस जयशंकर एक दिवसीय यात्रा पर हैं.

उन्‍होंने कोलंबो हवाई अड्डे पर उतरने के तुरंत बाद सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि‘‘कोलंबो में पुन: आकर अच्छा लगा. साथ ही श्रीलंकाई नेतृत्व के साथ आज अपनी बैठकों को लेकर उत्साहित हूं.’’

एस जयशंकर की यात्रा पर चीन की नजर

23 सितंबर को दिसानायके के नेतृत्व वाली ‘नेशनल पीपुल्स पावर’ (एनपीपी) की सरकार के सत्ता में आने के बाद जयशंकर श्रीलंका का दौरा करने वाले पहले विदेशी गणमान्य व्यक्ति हैं. यही वजह है कि चीन की परेशानी बढ़ी हुई है, और वो जयशंकर की इस यात्रा पर चीन नजर बनाए हुए है.

सबसे पहले नए विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

जयशंकर ने श्रीलंका पहुंचने के बाद सबसे पहले यहां के नए विदेश मंत्री विजिथा हेराथ से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि “आज कोलंबो में विदेश मंत्री विजिथा हेराथ के साथ व्यापक और विस्तृत वार्ता संपन्न हुई. इस दौरान भारत-श्रीलंका साझेदारी के विभिन्न आयामों की समीक्षा की. साथ ही उन्हें श्रीलंका के आर्थिक पुनर्निर्माण में भारत के निरंतर समर्थन का आश्वासन दिया. उन्‍होंने आगे लिखा कि हमारी नेबरहुड फर्स्ट नीति और सागर दृष्टिकोण हमेशा भारत श्रीलंका के संबंधों की प्रगति का मार्गदर्शन करेगा”

पीएम और राष्ट्रपति से भी होनी है मुलाकात

अधिकारियों के मुताबि‍क, जयशंकर श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके और प्रधानमंत्री हरिनी अमरसूर्या से भी मुलाकात करेंगे. इस यात्रा के दौरान वो कोलंबो में नयी एनपीपी सरकार के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के प्रयास करने के साथ ही श्रीलंका में भारतीय परियोजनाओं पर भी चर्चा करेंगे और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में उनके महत्व को रेखांकित करेंगे.

भारतीय परियोजनाओं को रद्द करने का दावा

बता दें कि दिसानायके ने विपक्ष में रहते हुए कुछ भारतीय परियोजनाओं, खासकर अदाणी समूह द्वारा संचालित सतत ऊर्जा परियोजनाओं पर आपत्तियां जताई थीं और सत्‍ता में आने के बाद इन परियोजनाओं को रद्द करने का वादा भी किया था. उनका दावा था कि ये परियोजनाएं श्रीलंका के हितों के खिलाफ हैं.

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