Indonesia: अलगाववादी विद्रोहियों ने न्यूजीलैंड के पायलट को किया रिहा, एक साल पहले बनाया था बंधक

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Indonesia: इंडोनेशिया में अलगाववादी विद्रोहियों ने बंधक बनाए गए न्यूजीलैंड के पायलट को रिहा कर दिया है. इसकी जानकारी इंडोनेशिया के अधिकारियों ने दी है. ‘कार्टेन्ज पीस टास्कफोर्स’ के प्रवक्ता बायु सुसेनो ने बताया कि इंडोनेशियाई विमानन कंपनी ‘सुसी एयर’ के लिए काम करने वाले क्राइस्टचर्च के पायलट फिलिप मार्क मेहरटेंस को विद्रोहियों ने रिहा कर दिया और शनिवार सुबह टास्कफोर्स को सौंप दिया. आइए जानते हैं क्‍या पूरा मामला…

जानें मामला

दरअसल, न्‍यूजीलैंड के पायलट फिलिप मेहरटेंस को वेस्‍ट पापुआ नेशनल लिबरेशन आर्मी के लड़ाकों ने बंधक बना लिया था. एक साल से अधिक समय तक कैद में रखने के बाद अब विद्रोहियों ने पायलट को मुक्‍त कर दिया है. पायलट को टास्‍कफोर्स को सौंप दिया गया है. बता दें कि टास्‍कफोर्स पापुआ में अलगाववादी समूहों से निपटने के लिए इंडो‍नेशिया सरकार द्वारा स्‍थापित एक संयुक्‍त सुरक्षा बल है.

रनवे पर हमला कर किया पायलट का अपहरण

‘फ्री पापुआ मूवमेंट’ के एक क्षेत्रीय कमांडर इगियानस कोगोया के नेतृत्व में विद्रोहियों ने 7 फरवरी, 2023 को पारो के एक छोटे से रनवे पर हमला कर दिया था और पायलट मेहरटेंस को अगवा कर लिया था. कोगोया ने पहले कहा था कि अलगाववादी विद्रोही पायलट मेहरटेंस को तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक कि इंडोनेशिया की सरकार पापुआ को एक संप्रभु देश बनने की अनुमति नहीं देती. ‘वेस्ट पापुआ लिबरेशन आर्मी’ ‘फ्री पापुआ मूवमेंट’ की सशस्त्र ब्रांच है.

ठीक है पायलट का स्वास्थ्य

पीस टास्कफोर्स’ के प्रवक्ता बायु सुसेनो ने बताया कि पायलट मेहरटेंस का स्वास्थ्य ठीक है. उन्हें गहन स्वास्थ्य जांच के लिए तिमिका ले जाया गया है. पायलट को बचाने के लिए कई बार सैन्य कार्रवाई भी गई थी लेकिन इसमें इंडोनेशिया सरकार असफल रही.

वेस्ट पापुआ संघर्ष है क्या?

दरअसल, 1949 में नीदरलैंड से इंडोनेशिया की स्वतंत्रता पर सहमति बनी, लेकिन पश्चिमी पापुआ डच नियंत्रण में रहा. हालांकि, इंडोनेशिया ने 1961 में डच शासन को समाप्त करने के लिए सशस्त्र अभियान चलाया और अमेरिकी समर्थन से दो वर्ष बाद उसे कंट्रोल में ले लिया. साल 1969 में संयुक्त राष्ट्र  में मतदान कराया गया था जिसे स्वतंत्र विकल्प अधिनियम के नाम से जानते हैं. इस मतदान की आलोचना की गई थी, क्योंकि इंडोनेशिया की देखरेख में केवल 1,022 पापुआ नेताओं को ही वोट करने की इजाजत दी गई थी. इस घटना के बाद से फ्री पापुआ मूवमेंट के नाम से स्वतंत्रता समर्थक विद्रोहियों ने सशस्त्र अभियान शुरू किया था जो आज भी चल रहा है.

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