Maldives Sink: हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है. यह एक ऐसा दिन है, जो हमें हमारी धरती के प्रति जिम्मेदारी और उसके भविष्य के संकटों की याद दिलाता है, मगर इस साल का ये संदेश पहले से कहीं ज्यादा गंभीर है. क्योंकि धरती का एक खूबसूरत हिस्सा मालदीव और भारत का लक्षद्वीप धीरे-धीरे समुद्र में समाने के कगार पर पहुंच रहा है.
यह जलवायु परिवर्तन के वास्तविक प्रभावों की एक भयावह सच्चाई है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन, संस्कृति और अस्तित्व का संकट पैदा कर रही है.
खुद के अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा मालदीव
दरअसल, दुनियाभर के पर्यटक मालदीव को स्वर्ग मानते हैं, लेकिन अब खुद वो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. मालदीव देश-दुनिया का सबसे निचला देश है, जिसकी औसत ऊंचाई सिर्फ 1.5 मीटर है. इसके 1190 द्वीपों में से 80% द्वीप समुद्र तल से महज 1 मीटर से भी कम ऊंचाई पर स्थित हैं.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक, 1901 से 2018 तक समुद्र का स्तर 15–25 सेंटीमीटर तक बढ़ा है. 2013 से 2022 के बीच यह वृद्धि 4.62 मिमी प्रति वर्ष हो चुकी है – यानी अब समुद्र पहले से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है.
2050 तक मालदीव के कई द्वीप हो जाएंगे जलमग्न
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि साल 2050 तक मालदीव के कई द्वीप जलमग्न हो सकते हैं. यह केवल भौगोलिक संकट नहीं बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय आपदा का संकेत है. दरअसल, मालदीव एक ऐसा देश है, जो खुद पर्यावरण के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है, लेकिन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. वहीं, दुनिया की कार्बन गतिविधियों का सबसे पहला शिकार बनने वाला है.
समुद्र की गिरफ्त में आ रहा भारत का लक्षद्वीप
पड़ोसी देश मालदीव की तरह ही भारत का लक्षद्वीप द्वीपसमूह भी अब जलवायु परिवर्तन की सीधी मार झेलने के कगार पर है. IIT खड़गपुर और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, लक्षद्वीप में 0.4–0.9 मिमी प्रति वर्ष की दर से समुद्र स्तर बढ़ने की आशंका जताई गई है.
दरअसल, जैसे-जैसे समुद्र तट पीछे खिसकते जा रहे हैं, हजारों लोग बेघर होने के कगार पर हैं. उनकी संपत्ति, रोजगार, परंपरा और संस्कृति सब समुद्र में समाने की स्थिति में है.
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