इस देश ने लैब में तैयार किए लाखों मच्छर, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह

Abhinav Tripathi
Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

mosquito in lab: मच्छरों से आपका सामना हर दिन ही होता होगा. कई बार मच्छरों के काटने से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मच्छरों के काटने से डेंगू, मलेरिया जैसी तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन सब के बीच अफ्रीकी देश ने मच्छरों से निपटने के लिए गजब का प्रयोग किया है.

दरअसल, पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में इस समय मच्छरों का आतंक देखने को मिल रहा है. इन सब के बीच इस देश में लैब में पैदा किए गए लाखों मच्छरों को छोड़ा गया है. बताया जा रहा है कि ये लैब में बने मच्छर जंगली मादा मच्छरों का खात्मा कर देंगे. जंगली मादा मच्छर ही डेंगू- मलेरिया जैसी बीमारियों को फैलाते हैं.

लैब में बने मच्छरों में क्या खास

आपको बता दें कि जिन मच्छरों को वातावरण में छोड़ा गया है वह काटते नहीं है. इन मच्छरों को ब्रिटेन की जैव प्रौद्योगिकी कंपनी ऑक्सीटेक ने विकसित किया है. मीडिया रिपोर्ट्स से मिली जानकारी के अनुसार लैब में जो मच्छर विकसित किए गए हैं, उनको ब्रिटेन की कंपनी ऑक्सीटेक ने डेवलप किया है. इन मच्छरों को जेनेटिकली मॉडिफाई किया गया है. ये मच्छर ना ही किसी इंसान को काटते हैं और ना ही कोई बीमारी फैलाते हैं, इसके उलट ये मच्छर इंसानों को काटने वाली मादा मच्छरों को खत्म करने का काम करते हैं.

क्या है इन लैब में बने मच्छरों का आवश्यकता

अगर ब्रिटेन की जैव प्रौद्योगिकी कंपनी ऑक्सीटेक की मानें तो ये मच्छर जेनेटिकली मॉडिफाई हैं और जंगली मादा मच्छरों के साथ प्रजनन की कोशिश करते हैं. इन मच्छरों के अंदर एक खास प्रकार का जीन है, जो जंगली मादा मच्छरों को प्रजनन की उम्र तक पहुंचने ही नहीं देता है. प्रजनन के दौरान ही ज्यादातर जंगली मादा मच्छरों की मौत हो जाती है. इस लैब विकसित मच्छरों की खास बात है कि जेनेटिकली मोडिफाइड है, इससे जंगली मादा मच्छर के प्रजनन से सिर्फ नर मच्छर पैदा होता है. ये मच्छर इंसानों को काटता नहीं और ना ही इससे किसी को कई खास खतरा है.

ज्ञात हो कि अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 के बाद दुनिया के कई देश मच्छरों से निपटने के लिए जेनेटिकली मॉडिफाइड मच्छरों का सहारा ले रहे हैं. भारत में भी इसको आजमाया गया है जो काफी हद तक सफल भी रहा है.

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