Myanmar Junta Army: म्यांमार में पिछले साढ़े तीन साल से चल रहा गृह युद्ध समाप्त होने की कगार पर आ गया है. दरअसल, म्यांमार की जुंटा आर्मी घुटनों पर आ गई है. म्यांमार की संकटग्रस्त जुंटा आर्मी ने अपने शासन का विरोध करने वाले सशस्त्र समूहों को लड़ाई बंद करने और शांति लाने के लिए बातचीत शुरू करने के लिए आमंत्रित किया है.
बता दें कि जुंटा आर्मी ने यह कदम साढ़े तीन साल से सशस्त्र समूहों के साथ चल रही जंग में हो रहे भारी नुकसान को देखते हुए उठाया है. जुंटा ने खुद लड़ाई बंद करने का आह्वान किया है और वह इसके लिए बातचीत को भी राजी हो गया है.
एएफपी समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, यह अप्रत्याशित पेशकश जातीय अल्पसंख्यक सशस्त्र समूहों और लोकतंत्र समर्थक “पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज” के हाथों युद्ध के मैदान में बड़े पैमाने पर हार का सामना करने के बाद आई है, जो 2021 में सेना द्वारा तख्तापलट का विरोध करने के लिए खड़े थे. अपने शासन के प्रति दृढ़ प्रतिरोध से जूझने के साथ-साथ जुंटा यागी टाइफून से भी जूझ रहा है, जिसके कारण आई बाढ़ में 400 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों हजारों लोगों को मदद की ज़रूरत पड़ी.
जुंटा ने किया ये ऐलान
म्यांमार की जुंटा आर्मी ने एक बयान में कहा, “हम राज्य के खिलाफ लड़ रहे जातीय सशस्त्र समूहों, आतंकवादी विद्रोही समूहों और आतंकवादी पीडीएफ समूहों को शांति हेतु बातचीत के लिए आमंत्रित करते हैं. ताकि वे आतंकवादी लड़ाई छोड़ दें और राजनीतिक समस्याओं को राजनीतिक रूप से हल करने के लिए हमारे साथ संवाद करें.”
बता दें कि जुंटा की सेना ने फरवरी 2021 में आंग सान सू की की निर्वाचित नागरिक सरकार को बेदखल कर दिया था, जिससे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और उसके बाद क्रूर कार्रवाई की गई. नागरिकों ने जवाबी कार्रवाई के लिए पीडीएफ की स्थापना की और कई दशकों से सेना से लड़ाई लड़ने वाले जातीय अल्पसंख्यक सशस्त्र समूह फिर से सक्रिय हो गए, जिससे देश गृहयुद्ध में डूब गया. बयान में कहा गया है कि सशस्त्र समूहों को “स्थायी शांति और विकास लाने के लिए दलगत राजनीति और चुनाव का रास्ता अपनाना चाहिए.”
जुंटा ने माना जंग से थम गया देश
जुंटा ने कहा, “देश के मानव संसाधन, बुनियादी ढांचे और कई लोगों की जान चली गई है और संघर्ष के कारण देश की स्थिरता और विकास अवरुद्ध हो गया है. “थाईलैंड के साथ सीमा पर अधिक स्वायत्तता के लिए दशकों से सेना से संघर्ष कर रहे करेन नेशनल यूनियन (केएनयू) के प्रवक्ता पदोह सॉ ताव नी ने कहा कि बातचीत केवल तभी संभव है जब सेना “सामान्य राजनीतिक उद्देश्यों” पर सहमत हो. उन्होंने एएफपी को बताया, भविष्य की राजनीति में कोई सैन्य भागीदारी न हो और सेना को एक संघीय लोकतांत्रिक संविधान से सहमत होना होगा.” इसके अलावा उन्हें (सेना को) अपने द्वारा किए गए हर काम के लिए जवाबदेह होना होगा…जिसमें युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध भी शामिल हैं. मगर कोई दंडमुक्ति नहीं होगी. “अगर वे इससे सहमत नहीं हैं तो कुछ नहीं होगा.”