Ocean Court Victory: एंटीगुआ और बारबुडा, बहामास समेत छोटे द्वीपीय देशों के समूह ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बड़ी जीत हासिल की है. दरअसल, इन देशों ने समुद्र के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने के लिए जरूरी कदम उठाने की मांग की हैं.
इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द ला ऑफ द सी (ITLOS) ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े अपने पहले फैसले में कहा कि समुद्र ग्रीन हाउस गैसों का अवशोषण करते हैं और इसे समुद्री प्रदूषण माना जाता है ऐसे में यह सभी देशों की जिम्मेदारी है कि वो पेरिस समझौते के तहत जरूरी कदमों से आगे जाकर समुद्री पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करें.
नौ द्वीपीय देशों ने अदालत का किया था रुख
जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते समुद्री स्तर का सामना कर रहे नौ द्वीपीय देशों ने अंतरराष्ट्रीय अदालत से इस मामले में अपनी राय जारी करने की मांग की थी. हालांकि कोर्ट को की राय कानूनी तौर पर बाध्य नहीं है, लेकिन इससे इन देशों को अपनी जलवायु परिवर्तन नीति बनाने में काफी हद तक मदद मिलेगी. वहीं, इसका उपयोग दूसरे मामलों में भी कानूनी नजीर के तौर पर किया जा सकेगा.
जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर आपदा
वहीं, एंटीगुआ और बारबुडा के प्रधानमंत्री गैस्टन ब्राउन ने कहा कि ITLOS की राय जलवायु परिवर्तन के खतरों को लेकर हमारे कानूनी और राजनयिक प्रयासों को तेज करेगी. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हम गंभीर आपदा के मुहाने पर खड़े हैं. समुद्र के बढ़ते स्तर के मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में लाने वाले दूसरे देश टुवालू, पलाउ, सेंट लूसिया, नीयू, वनातू, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस और सेंट किट्स और नेविस हैं.
जरूरी कदम उठाने के लिए कानूनी रूप से उत्तरदायी
अंतरराष्ट्रीय अदालत का कहना है कि राज्य वैश्विक तापमान को औद्योगिकीकरण से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने के लिए कानूनी रूप से उत्तरदायी हैं. वहीं, इससे पहले सितंबर में मामले की सुनवाई के दौरान विश्व में सबसे अधिक कार्बन का उत्सर्जन करने वाले देश चीन ने द्वीपीय देशों के अनुरोध को चुनौती दी थी. चीन का तर्क था कि न्यायाधिकरण को सलाह के तौर पर राय जारी करने का अधिकार नहीं है.
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