International News: फिलिस्तीनी के समर्थन में छात्रों के विरोध ने बीते कुछ दिनों से अमेरिका को हिला दिया है. पुलिस प्रदर्शनकारियों और उनके विरोधियों के बीच टकराव को कम करने में लगी है. खास बात ये है कि जिन कैंपस में छात्रों के प्रदर्शन शुरू हुआ है, वहां उन्होंने गाजा में स्थायी युद्धविराम, इजराल को अमेरिकी सैन्य सहायता देना बंद करने के साथ ही, विश्वविद्यालय को हथियार आपूर्तिकर्ताओं और युद्ध से लाभ कमाने वाली अन्य कंपनियों से विनिवेश की मांग की है.
कौन हैं ये प्रदर्शनकारी?
प्रदर्शनकारियों ने उन छात्रों और फैकल्टी मेंबर्स के लिए माफी की मांग की है, जिन्हें प्रदर्शन करने के चलते निकाल दिया गया है. फिलिस्तीन के समर्थक में हो रहे विरोध प्रदर्शन में छात्र, फैकल्टी के अलावा यहूदी और मुस्लिम धर्मों के बाहरी कार्यकर्ता भी शामिल हैं. वहीं, विरोध प्रदर्शन करने वाले संगठनों में स्टूडेंट्स फॉर जस्टिस इन फिलिस्तीनी और Jewish Voice for Peace जैसे संगठन शामिल हैं.
विरोध प्रदर्शन में बाहरी लोगों का दखल
विरोध प्रदर्शन करने वाले संगठनों ने इजरायल समर्थक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा से इनकार किया है. वहीं, यहूदी स्टूडेंट्स की मानें, तो वह कैंपस में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. वह ‘यहूदी विरोधी’ नारों से घबरा जाते हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन की मानें, तो कैंपस में हो रहे विरोध प्रदर्शन में बाहर के कार्यकर्ताओं सहयोग और संचालन किया है. टेक्सास यूनिवर्सिटी के ऑस्टिन ने बताया कि 29 अप्रैल को यूनिवर्सिटी परिसर में गिरफ्तार 79 लोगों में 45 विश्वविद्यालय के नहीं थे.
प्रदर्शनकारियों के विरोधी प्रदर्शनकारी कौन हैं?
दरअसल, इजरायली अमेरिकी और जायोनी ग्रुप्स समूहों के साथ यहूदी-अमेरिकी समुदाय के लोग भी प्रदर्शन कर रहे हैं. बता दें कि लॉस एंजिल्स और यूसीएलए में इजरायली अमेरिकन काउंसिल और इजरायल एडवोकेसी ग्रुप द्वारा आयोजित रैली में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया. एक मई को कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले में इजरायल का समर्थन करने वाले जायोनी ग्रुप के सह-संस्थापक और फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारी के बीच झड़प भी हुई. मिसिसिपी यूनिवर्सिटी में सैकड़ों छात्रों ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन में अमेरिकी झंडे और बैनर लहराए. इसके बाद उन्होंने फिलिस्त समर्थक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ नारे भी लगाए.
एक्शन में पुलिस प्रशासन
यूनिवर्सिटी प्रशासन इन प्रदर्शनों को खत्म कराने का प्रयास कर रहा है. इसके लिए प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर धरना स्थल खाली कराने के लिए पुलिस की मदद ली जा रही है. इस बात से आप समझ सकते हैं कि छात्रों ने जब मैनहट्टन कैंपस में कैंप लगाया, तो अगले दिन 18 अप्रैल को पुलिस बल भेजा गया. इसके बाद 30 अप्रैल को भी पुलिस ने कैंप के अलावा छात्रों के कब्जे वाली इमारत पर भी छापा मारा. इस दौरान सैकड़ों गिरफ्तारियां हुईं. इसके बाद कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी बर्कले ने फिलिस्तीन समर्थक कैंपस को तब तक रहने की अनुमति दी, जब तक परिसर को किसी तरह से बाधित नहीं करता साथ ही हिंसा का खतरा पैदा नहीं करता.
आम स्टूडेंट्स पर क्या प्रभाव पड़ा?
लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन के कारण कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रशासन को कई बार वर्चुअल क्लास चलानी पड़ रही है. प्रदर्शन की वजह से दक्षिणी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने मेन-स्टेज-ग्रेजुएशन समारोह भी रद्द कर दिया है. यूनिवर्सिटी ने ये निर्णय तब लिया, जब पुलिस ने फिलिस्तीनी समर्थक कैंप से दर्जनों गिरफ्तारी की.
एक प्रशासनिक भवन में छात्रों द्वारा खुद को बंद करने के बाद कैलिफोर्निया स्टेट पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी हम्बोल्ट ने व्यक्तिगत कक्षाओं का संचालन भी रद्द कर दिया. मिशिगन यूनिवर्सिटी की मानें, तो मई के शुरुआत में वह ग्रेजुएशन समारोह में स्वतंत्र अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति देगा, लेकिन व्यवधान को भी रोकेगा.
राजनीतिक नेताओं की प्रतिक्रिया
इस मामले में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान दिया है. उन्होंने कहा कि अमेरिकियों को प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन हिंसा का नहीं. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने भी इजरायल को धन और हथियारों देने की भी आलोचना की है. वहीं, रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप ने परिसर में चल रहे विरोध प्रदर्शन को ‘जबरदस्त नफरत’ बताया है. उन्होंने कहा, “30 अप्रैल को कोलंबिया पर पुलिस की छापेमारी ‘देखने लायक एक खूबसूरत चीज़ थी.”