आर्कटिक में बड़ी ताकत बनकर उभरेगा भारत, रूस ने आइसब्रेकर शिप निर्माण में बनाया पार्टनर

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Russia-India Relation: यूक्रेन के साथ जंग के बीच रूस को भारत से जमकर मदद मिली है. भारत ने रूस से बहुत बड़े पैमाने पर तेल की खरीदारी की है. वो भी ऐसे वक्‍त में जब पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. इस बीच रूस ने भारत को बड़ी खुशखबरी दी है. रूस ने अत्‍याधुनिक गैर परमाणु आइसब्रेकर जहाज के निर्माण के लिए भारत को चुना है.

रूस ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है जब राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन चाहते हैं कि आर्कटिक क्षेत्र में नादर्न सी रूट का विकास किया जाए और पश्चिमी देशों के लगाए हुए बैन को मात दी जाए. रूस ने इस समुद्री रास्‍ते के लिए भी भारत को ऑफर दिया है. आइसब्रेकर शिप निर्माण के लिए दोनों देशों में बीच बातचीत चल रही है.

आर्कटिक में होगा भारत का दबदबा  

रूस के इस ऑफर से दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में मजबूती आएगी. साथ ही भारत आर्कटिक क्षेत्र में बड़ी ताकत बनकर उभरेगा. भारत सरकार दो जहाज बनाने वाली कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है ताकि नॉन न्‍यूक्लियर आइसब्रेकर का निर्माण किया जा सके. इस पूरे डील की कीमत 6 हजार करोड़ रुपये होगी. इस डील के लिए रूस की सरकारी परमाणु ऊर्जा कंपनी रोस्‍टोम का भी साथ मिल रहा है. रूसी कंपनी अच्‍छे माहौल वाली और क्षमता से लैस भारतीय कंपनी को ढूंढ रही है.

नादर्न सी रूट का फायदा

यूरेशिया टाइम्‍स की रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2023 में रूस ने कहा था कि उसने भारत को गैर परमाणु आइसब्रेकर निर्माण का प्रस्‍ताव दिया है. इनका संयुक्‍त उत्‍पादन किया जाना है. दरअसल, रूस चाहता है कि जहाजों से होने वाले वैश्विक व्‍यापार के लिए नादर्न सी रूट का निर्माण किया जाए, जो एक वैकल्पिक रास्‍ता होगा. इससे स्‍वेज नहर के मुकाबले उत्‍तरी यूरोप और पूर्वी एशिया के देशों को जल्‍दी से सामान पहुंचाने में मदद मिलेगी. रूस का लक्ष्‍य है कि इस रास्‍ते से कम से कम 15 करोड़ टन कच्‍चा तेल, एलएनजी, कोयला और अन्‍य सामान साल 2030 तक प्रत्‍येक वर्ष पहुंचाए जाएं.

भारत रूस का भरोसेमंद पार्टनर

दरअसल, आर्कटिक का समुद्री इलाका 6 महीने बर्फ में ढंका रहता है. यही वजह है कि आगे आइसब्रेकर की बहुत जरूरत पड़ेगी. रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात में जहाजों के निर्माण को लेकर सहमति बनी थी. बता दें कि अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते यूरोपीय शिपयार्ड रूस के लिए जहाज का निर्माण नहीं कर पा रहे हैं. वहीं चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के शिपयार्ड कम से कम 2028 तक के लिए बुक हैं.  इसी वजह से रूस को अब भारत की मदद लेनी पड़ रही है, जोकि उसका भरोसेमंद पार्टनर है. विश्‍लेषकों की मानें तो रूस भारत के साथ दोस्‍ती बढ़ाकर चीन को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है.

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