Russia Stopped Gas Supplies to Europe: नए साल के पहले दिन ही रूस ने यूक्रेन के रास्ते से यूरोप को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति को औपचारिक रूप से बंद कर दिया है. रूस ने साल 2019 से चल रहे गैस आपूर्ति समझौते को समाप्त कर दिया है. रूस ने कदम ऐसे समय में उठाया है, जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है.
बता दें कि दशकों तक यह पाइपलाइन ऊर्जा के लिए आपसी निर्भरता का प्रतीक थी. लेकिन अब इसका बंद होना रूस, यूक्रेन और यूरोपीय संघ (ईयू) के रिश्तों और ऊर्जा नीतियों में बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है. हालांकि रूस और यूक्रेन के बीच का गैस विवाद कोई नई बात नहीं है.
दोनों देशों के संघर्ष ने सप्लाई को किया प्रभावित
दरअसल, यूक्रेन की सीमा से गुजरने वाली रूसी गैस पाइपलाइनें यूरोपीय संघ के लिए एक महत्वपूर्ण आपूर्ति मार्ग रही हैं, जिसे दोनों देशों के बीच के जंग ने काफी प्रभावित किया है. यही वजह है कि यूरोप ने रूस की ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए नए रास्ते तलाशने शुरू किए, जिसमें अमेरिका, कतर और नॉर्वे जैसे अन्य आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख किया गया.
आर्थिक और राजनैतिक निहितार्थ
रूस के लिए नुकसान:- रूस यूरोप को गैस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था, लेकिन अब वो अपने एक बड़े बाजार को खो रहा है, जिसका प्रभाव रूसी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक रूप से पड़ेगा, खासतौर से उसके ऊर्जा क्षेत्र पर.
यूक्रेन का नुकसान:- इस सप्लाई के बंद होने से यूक्रेन को ट्रांजिट शुल्क के रूप में प्राप्त होने वाली आय भी प्रभावित होगी. ऐसे में देश पहले ही युद्ध से जूझ रहा है और अब इस आय का नुकसान उसकी आर्थिक स्थिति को और खराब कर सकता है.
यूरोप के लिए चुनौतियां:- रूस के इस कदम से यूरोप को अब अन्य स्रोतों से गैस की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी, जो शायद अधिक महंगा हो सकता है साथ ही ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकता है.वहीं, सर्दियों के मौसम में, गैस की मांग बढ़ने से यह स्थिति और जटिल हो सकती है.
चीन और भारत की ओर रूख कर सकता है यूरोप
रूस के इस फैसले के वजह से ऊर्जा क्षेत्र में एक नई वैश्विक गतिशीलता की स्थापना हो रही है. ऐसे में अब यूरोप ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने के लिए अधिक विविधता और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर रुख कर सकता है. जबकि रूस एशियाई बाजारों, विशेष रूप से चीन और भारत की तरफ ध्यान केंद्रित कर सकता है.
हालांकि यूक्रेन के माध्यम से रूसी गैस सप्लाई का बंद होना न केवल यूरोप-रूस संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार में भी एक बड़ा बदलाव है. रूस का ये कदम यूरोपीय देशों को अपनी ऊर्जा नीतियों की समीक्षा करने और नई रणनीतियों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा.
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