Bangladesh: बांग्लादेश में संविधान सुधार आयोग ने कई सिद्धांतों में बदलाव के लिए एक रिपोर्ट सौंपी है. इसमें देश के तीन मूलभूत सिंद्धांतों- धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद को हटाने की बात कही गई है. अयोग के इस प्रस्ताव के आने के बाद बांग्लादेश के साथ ही भारत में चिंता बढ़ गई है, क्योंकि ये सिद्धांत 1971 के मुक्ति संग्राम के मूल आदर्शों का हिस्सा थे. आयोग ने बुधवार को अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को अपनी रिपोर्ट सौंपी है.
ये राज्य सिद्धांत प्रस्तावित
बांग्लादेश में हसीना सरकार के गिरने के बाद नए प्रशासन ने संविधान सुधार अयोज की स्थापना की. संविधान सुधार आयोग ने पांच नए राज्य सिद्धांतों-समानता, मानव सम्मान, सामाजिक न्याय, बहुलवाद और लोकतंत्र को प्रस्तावित किया है, जिसमें मात्र लोकतंत्र को ही पिछले सिद्धांतों में से बदला नहीं गया है.
आयोग के अध्यक्ष अली रियाज ने बताया कि हम 1971 के मुक्ति संग्राम के महान आदर्शों पर काम करना चाहते हैं. इसके साथ ही 2024 में लोगों ओर से किए गए आंदोलन के दौरान उनकी आकांक्षाओं के मद्देनजर पांच राज्य सिद्धांतों के लिए प्रस्ताव भेजा है.
दो सदन के संसद का प्रस्ताव
सुधार आयोग ने देश में दो सदन के संसद के गठन की सिफारिश की है. इसमें निम्न सदन को नेशनल असेंबली और उच्च सदन को सीनेट नाम दिया जाएगा. निचले सदन में 400 और ऊपरी सदन में 105 सीटें होंगी. प्रस्तावित दोनों सदनों का कार्यकाल मौजूदा पांच साल से कमकर 4 साल का होगा. निम्न सदन बहुमत के आधार पर और ऊपरी सदन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए.
धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को हटाने के संभावित प्रभाव
सेक्युलरिज्म और समाजवाद को हटाने के प्रस्ताव को लेकर बांग्लादेश में व्यापक स्तर पर बिहस छिड़ गई है. ये सिद्धांत बांग्लादेश की स्वतंत्रता और सामाजिक संरचना के आधारभूत स्तंभ माने जाते हैं. इनको हटाने से देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और सामाजिक न्याय की दिशा पर गहरा असर देखने को मिल सकता है.
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