Shocking News: जीव जगत में सबसे समझदार इंसान को माना जाता है. फिर भी अगर हमें किसी तरह की बीमारी होती है तो हमें डॉक्टर से सलाह लेकर दवा लेनी पड़ती है. लेकिन चिम्पैंजी ऐसा जीव है, जो अपना इलाज खुद से ही कर लेते हैं. इसका खुलासा एक रिसर्च में किया गया है.
दरअसल, इसका खुलासा हाल ही में हुए एक अध्ययन में हुआ है. जिसमें पाया गया कि चिम्पैंजी अपने शरीर पर लगे चोट को सही करने के लिए अलग-अलग औषधी वाले पौधों का इस्तेमाल करते हैं. चिम्पांजी खुद को ही ठीक करने के लिए दर्द निवारक और दवाई के गुणों वाले पौधे खाते हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो चिम्पांजी नई दवाओं की खोज में भी मदद कर सकते हैं.
जानिए क्या बोले शोधकर्ता
बता दें कि हाल ही में युगांडा के ‘बुडोंगो सेंट्रल फॉरेस्ट रिजर्व’ में ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने चिम्पैंजी के व्यवहारों और उनके स्वास्थ्य के बारे में रिसर्च किया है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. एलोडी फ्रीमैन ने दावा किया है कि चिम्पैंजी अपने शरीर पर लगी हुई चोट का इलाज करने के लिए औषधियों वाले पौधे ढूंढ कर खाते हैं, हालांकि उनका का कहना है कि इस बात को लेकर पूरी तरह से पुष्टि नहीं की गई है कि चिम्पैंजी इत्तेफाक से वे औषधियां खाते हैं या जानबूझकर.
चोट लगने पर खाई दर्दनाशक छाल
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के इस रिसर्च को पीएलओएस ओएनई मैगजीन में पब्लिश किया गया है. शोधकर्ताओं ने 51 जंगली चिम्पैंजी पर अपना रिसर्च किया है. अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने देखा कि एक नर चिम्पैंजी जिसे किसी वजह से हाथ में चोट लग गई थी उसने फर्न की पत्तियों को ढूंढा और फिर उसे खा लिया, फर्न की पत्तियों का इस्तेमाल दर्द मिटाने या सूजन को कम करने के लिए इस्लेमाल किया जाता है. इसके अलावा एक चिम्पैंजी पैरासिटिक इंफेक्शन से पीड़ित था जिसमें उसने ‘स्कूटिया मायर्टिना’ की छाल खाई, इस औषधि में एंटीबायोटिक गुण पाया जाता है.
रिसर्च में हुआ खुलासा
डॉ. एलोडी फ्रीमैन ने बताया कि एक लंगड़ाते चिम्पांजी के जरिए उन्होंने क्रिस्टेला पैरासिटिका नामक एक फर्न पौधा खोजा, जिसमें शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए गए. डॉ. फ्रीमैन ने कहा, “हम इन जंगलों में हर चीज के औषधीय गुणों का परीक्षण नहीं कर सकते हैं.” “तो क्यों न उन पौधों का परीक्षण किया जाए जिनके बारे में हमें जानकारी है, वे पौधे जिन्हें चिम्पांजी खोज रहे हैं?” ” उन्होंने और उनके सहयोगियों ने बीमारी और संक्रमण की जांच के लिए मल और मूत्र के नमूने जमा किए. उन्होंने विशेष रूप से उस समय ध्यान दिया जब कोई घायल या बीमार चिम्पांजी कुछ ऐसा खोज रहा था जो वे आमतौर पर नहीं खाते, जैसे पेड़ की छाल या फलों का छिलका.
कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं ने 13 विभिन्न पौधों की प्रजातियों से 17 नमूने एकत्र किए और उन्हें जर्मनी में न्यूब्रांडेनबर्ग यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज में डॉ. फैबियन शुल्ट्ज द्वारा परीक्षण के लिए भेजा. इससे पता चला कि लगभग 90% अर्क ने बैक्टीरिया के विकास को रोक दिया, और एक तिहाई में प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण थे.