दम है तो रूस से अपनी जमीन वापस ले चीन… ताइवान के राष्ट्रपति लाई का खुली चुनौती

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

ताइपे: चीन और ताइवान के बीच काफी समय से तनाव बना हुआ है. इस साल मई में ताइवान के आसपास बड़े पैमाने पर चीन के सैन्‍य अभ्‍यास ने इसे और भी बढ़ा दिया है. अब ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने कहा है कि चीन केवल उनको ही आंख दिखाता है, जबकि वह रूस से अपनी जमीन वापस नहीं ले पा रहा है. ताइवानी मीडिया के साथ एक इंटरव्यू में राष्‍ट्रपति लाई ने कहा कि चीन ताइवान पर अपना दावा करता है. अगर चीन को क्षेत्रीय अखंडता के बारे में इतनी ही चिंता है तो उसे 19वीं शताब्दी के आखिर में चीनी राजवंश द्वारा रूस को दी गई जमीन भी वापस ले लेनी चाहिए.

ऐगुन संधि का किया जिक्र

रविवार देर रात आए इंटरव्यू में लाई ने 1858 की ऐगुन संधि का जिक्र करते हुए कहा कि चीन ने रूस के सुदूर पूर्व में रूसी साम्राज्य के लिए भूमि के एक विशाल क्षेत्र पर साइन किए थे, जो अमूर नदी के साथ वर्तमान सीमा का अधिकतर हिस्सा बनाता है. चीन के किंग राजवंश ने अपने गिरावट के दौर में मूल तौर पर संधि की पुष्टि करने से इनकार कर दिया था, लेकिन दो वर्ष बाद पेकिंग के सम्मेलन में इसकी पुष्टि की गई. इसे बीजिंग 19वीं शताब्दी में विदेशी शक्तियों के साथ असमान संधियों में से एक कहता है.

इस वक्त रूस कमजोर, वापस अपनी जमीन ले चीन

ताइवान के राष्‍ट्रपति लाई ने कहा कि चीन अपनी क्षेत्रीय अखंडता के लिए ताइवान पर कब्जा नहीं करना चाहता है. अगर यह क्षेत्रीय अखंडता के लिए है तो फिर वह रूस से अपनी जमीन को वापस क्यों नहीं लेता है. जिस जमीन को ऐगुन की संधि में हस्‍ताक्षर र चीन ने रूस को दे दिया था. रूस तो आज के समय में अपने सबसे कमज़ोर दौर से गुजर रहा है. ऐसे में चीन किंग शासन के दौरान हस्ताक्षरित ऐगुन की संधि को रूस को याद दिलाते हुए उसके कब्‍जे से अपनी जमीन वापस मांग ले. चीन ऐसा नहीं करता है तो साफ है कि वह क्षेत्रीय कारणों से ताइवान पर हमला नहीं करना चाहता है.

लाई को अलगाववादी कहता है चीन 

राष्ट्रपति लाई का ये बयान ऐसे वक्‍त में आया है जब चीन ने उनके देश के खिलाफ बल प्रयोग के संकेत दिए हैं. दरअसल चीन लाई को अलगाववादी कहता है. चीन हमेशा से ही ताइवान को अपना क्षेत्र मानता रहा है. दूसरी ओर ताइवान की सरकार चीनी दावों को खारिज करती रही है. ताइवान की सरकार कहती है कि केवल द्वीप के लोगों को ही अपना भविष्य तय करने का अधिकार है.

ताइवान को अपना क्षेत्र बताया है चीन

उन्‍होंने आगे कहा कि चीन वास्तव में ताइवान पर अपने इरादों के साथ जो करना चाहता है, वह नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बदलना है. वह पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में आधिपत्य पाना चाहता है और यही उसका वास्तविक मकसद है. चीन के ताइवान मामलों के कार्यालय ने लाई की टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया है. चीनी सरकार का कहना है कि ताइवान प्राचीन काल से ही चीन का क्षेत्र रहा है. किंग ने 1895 में एक अन्य ‘असमान संधि’ में ताइवान को जापान को दे दिया और 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इसे चीनी सरकार को सौंप दिया गया. चार साल बाद ही माओत्से तुंग के कम्युनिस्टों के साथ गृह युद्ध हारने के बाद चीनी सरकार ताइवान से भाग निकली.

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