इस देश में तेजी से फैल रहा चीटियों का आतंक, बिजली और इंटरनेट की लगाई वाट

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Germany: जर्मनी में एक आक्रामक और विदेशी चींटी की प्रजाति ने आंतक मचा रखा है. ये चीटीं ‘टैपिनोमा मैग्नम’ प्रजाति की हैं जो भूमध्यसागरीय यानी मेडीटरेनियन क्षेत्र से आई हैं. यह चींटी अब उत्तर जर्मनी की ओर तेजी से फैल रही हैं. इसके चलते बिजली और इंटरनेट सेवाएं तक बाधित हो रही हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रजाति की विशाल कॉलोनियां न केवल तकनीकी ढांचे को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि इंसानी जीवन पर भी असर डाल रही हैं.

कीट विशेषज्ञ मैनफ्रेड वेर्हाग ने बताया… 

कार्लस्रूहे के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से जुड़े एक कीट विशेषज्ञ मैनफ्रेड वेर्हाग ने बताया कि, टैपिनोमा मैग्नम की सुपर कॉलोनियों में लाखों चींटियां होती हैं. ये पारंपरिक चींटी प्रजातियों से कई गुना बड़ी होती हैं. ये कॉलोनियां जर्मनी के कोलोन और हनोवर जैसे उत्तरी शहरों तक पहुंच चुकी हैं. इससे वहां की तकनीकी संरचना जैसे बिजली सप्‍लाई और इंटरनेट नेटवर्क तक खतरे में हैं.

क्या बोले वैज्ञानिक?

वैज्ञानिकों के अनुसार, यह चींटी मुख्‍य रूप से बाडेन-वुर्टेम्बर्ग और आसपास के क्षेत्रों में तेजी से कॉलोनियां बना रही है. कीहल नाम के एक शहर में पहले ही इस प्रजाति के वजह से बिजली और इंटरनेट बंद किया जा चुका है. इसके अलावा फ्रांस और स्विट्जरलैंड जैसे अन्य यूरोपीय देशों में भी इस चींटी की मौजूदगी दर्ज की गई है. ऐसे में माना जा रहा है कि यह संकट केवल जर्मनी तक ही सीमित नहीं रहने वाला है.

पर्यावरण सचिव ने दी चेतावनी

हालांकि टैपिनोमा मैग्नम को अभी तक आधिकारिक रूप से आक्रामक प्रजाति घोषित नहीं किया गया है, क्योंकि इसका स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक प्रभाव अभी तक साबित नहीं हुआ है. इसके बावजूद बाडेन-वुर्टेम्बर्ग के पर्यावरण सचिव आंद्रे बाउमन ने इसे एक कीट माना है और चेतावनी दी है कि यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचा सकती है.

चीटियों को रोकने की कोशिश

इस खतरे के मद्देनजर जर्मन वैज्ञानिक और प्रशासनिक एजेंसियां अब मिलकर इस चींटी के प्रसार को रोकने के लिए एक साझा परियोजना पर काम कर रही हैं. पहली बार इस दिशा में संगठित प्रयास शुरू हुए हैं ताकि तकनीकी ढांचे, पर्यावरण और नागरिकों को होने वाले नुकसान को समय रहते रोका जा सके. यह साफ हो गया है कि अब यह केवल एक कीट नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय चुनौती बनती जा रही है.

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