दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे डायबिटीज के मामले, UN की रिपोर्ट का दावा- 80 करोड़ वयस्क भी चपेट में

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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United Nations: इस दिनों डायबिटीज के मरीज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे है. यह एक ऐसी बीमारी है, जिससे लोगों को खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है, जिसका सही समय पर पता न चल पाने के कारण सही ढंग से उपचार न किए गए तो इससे हृदय, रक्त धमनियों, आंखों, गुर्दों और स्नायुतन्त्रों (नर्वस सिस्टम) संबंधी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. वहीं, इस समय सबसे अधिक मामले, ‘टाइप 2’ डायबिटीज के दिखाई दे रहे हैं, जोकि ज्‍यादातर शरीर में इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोध बढ़ने की वजह से पैदा होता है.

तीन दशकों में तेजी से बढ़े मामले

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी किए गए ताजे रिपोर्ट से पता चला है कि साल 1990 से 2022 के दौरान डायबिटीज के मामले दुनियाभर में 7 प्रतिशत से बढ़कर 14 प्रतिशत हो गए हैं, हालांकि इसका प्रमुख कारण सही समय पर इलाज न मिलना बताया गया है, जो वैश्विक असमानता को दर्शाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में, 30 वर्ष या उससे अधिक आयु के करीब 45 करोड़ वयस्कों को जरूरी उपचार उपलब्ध नहीं था. यह आंकड़ा कुल मरीजों का 59 प्रतिशत है, जिनमें से 90 प्रतिशत निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में रह रहे हैं.

डायबिटीज के साथ मोटापे की भी बढ़ी समस्या

वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक टैड्रॉस ग्रैबेसियस ने भी कहा कि पिछले तीन दशकों में डायबिटीज के मामलों में चिन्ताजनक रूप से उछाल आया है,जिससे मोटापे की समस्या भी बढ़ी है. उन्‍होंने कहा कि खान-पान की गलत आदतें,शारीरिक गतिविधियों में कमी और आर्थिक कठिनाइयों के वजह से यह समस्या गहराती जा रही है. ऐसे में डायबिटीज पर नियंत्रण पाने के लिए, देशों को तुरन्त आवश्‍यक क़दम उठाने होंगे.

इन क्षेत्रों में इलाज की कवरेज सबसे कम

रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्व भूमध्यसागर क्षेत्र में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की 20 फ़ीसदी वयस्क आबादी डायबिटीज की जंग से लड़ से रहे है. वहीं, इन क्षेत्रों में डायबिटीज़ के उपचार के लिए कवरेज सबसे कम है. हर 10 में से केवल 4 वयस्कों को ही ग्लूकोज कम करने वाली दवा मिल पा रही है. हालांकि डायबिटीज़ की इस बढ़ते समस्‍या ने निजात पाने के लिए यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने एक वैश्विक निगरानी फ़्रेमवर्क की शुरुआत की है, जिसके तहत रोकथाम उपायों, उपचार व देखभाल प्रयासों का आकलन किया जा सकेगा.

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