“1965 से हो रहा टाल-मटोल”, सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर फिर UNSC पर बरसा भारत, कहा-अब इंतजार की स्थिति नहीं

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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UNSC: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC)की स्थाई सदस्यता में सुधार को लेकर भारत ने एक बार फिर सख्‍ती दिखाई है. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी हरीश ने सोमवार को ‘सुरक्षा परिषद में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और सदस्यता में वृद्धि का प्रश्न’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक पूर्ण सत्र में कहा कि  UNSC के मौजूदा ढांचे में ‘मामूली फेरबदल’ की कोशिशों के खिलाफ आगाह करते हुए कहा कि इससे स्थायी सदस्यता में विस्तार और एशिया,अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के कम प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने जैसे महत्वपूर्ण तत्वों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि UNSC  में सुधार की तत्काल जरूरत कई दशकों से सामूहिक रूप से दोहराए जाने के बाद भी यह ‘‘निराशाजनक है कि 1965 के बाद से इस संबंध में हमारे पास दिखाने के लिए कोई परिणाम नहीं है, जब सुरक्षा परिषद का अंतिम विस्तार केवल अस्थायी श्रेणी में किया गया था.’’

 न कोई समय-सीमा नहीं और न ही कोई अंतिम लक्ष्य

बता दें कि साल 1965 में परिषद की सदस्यता छह निर्वाचित सदस्यों से बढ़ाकर 10 कर दी गई थी.  इसी बीच अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) की प्रक्रिया की प्रकृति को इंगित करते हुए हरीश ने कहा कि अपनी स्थापना के 16 साल बाद, आईजीएन एक-दूसरे के साथ संवाद के बजाय मुख्य रूप से बयानों के आदान-प्रदान तक ही सीमित है. बातचीत का कोई पाठ नहीं. कोई समय-सीमा नहीं और न ही कोई निश्चित अंतिम लक्ष्य.”

अब इंतजार की स्थिति नहीं…

उन्‍होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जब भारत आईजीएन में वास्तविक ठोस प्रगति चाहता है, जिसमें पाठ-आधारित वार्ता के अग्रदूत के रूप में सुरक्षा परिषद के सुधार के एक नए ‘मॉडल’ के विकास के संबंध में प्रगति भी शामिल है, तो दिल्ली दो मामलों में सावधानी बरतने का आग्रह करती है. इसमें पहला यह है कि सदस्य राज्यों से जानकारी की न्यूनतम सीमा की खोज से उन्हें अपना मॉडल पेश करने के लिए अनिश्चित समय तक इंतजार करने की नौबत नहीं आनी चाहिए. वहीं, ‘कन्वर्जेंस’ के आधार पर एक समेकित मॉडल के विकास से सबसे कम सामान्य ‘डिनॉमिनेटर’ का पता लगाने की रेस में नहीं चाहिए.

इस दौरान हरिश ने आगाह भी किया कि इससे स्‍थायी श्रेणी में विस्‍तार और एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका तथा कैरिबियाई देशों के कम प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने जैसे महत्वपूर्ण तत्वों को अनिश्चित काल के लिए या कहें तो ‘भविष्य में लंबे समय के लिए’ स्थगित किया जा सकता है.

संरा सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने का हकदार

भारत का मानना है कि साल 1945 में स्थापित 15 सदस्यीय परिषद 21वीं सदी के उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं है और न ही समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करती है. वह सही मायने में संरा सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने का हकदार है. बता दें कि इससे पहले सितंबर के महीने में संयुक्त राष्ट्र के ऐतिहासिक ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया था कि वैश्विक शांति और विकास के लिए वैश्विक संस्थानों में सुधार आवश्यक हैं और सुधार प्रासंगिकता की कुंजी है.

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