अमेरिका के साथ ट्रेड डेफेसिट कम करने के लिए भारत ने निकाला नया रास्ता, खुश हो जाएंगे डोनाल्ड ट्रंप

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

US crude imports rise: ट्रेड वार को लेकर जहां पूरी दुनिया अमेरिका के साथ उलझी हुई है. वहीं, भारत ने कच्चा तेल को एक स्ट्रैजिक हथियार बना दिया है. दरअसल, भारत ने अमेरिका के साथ ट्रेड डेफेसिट कम करने और अरब देशों पर साइलेंट प्रेशर बनाने के लिए एक नया रास्‍ता निकाला है, जिससे न ट्रंप नाराज होंगे और न भारत का नुकसान होगा. बल्कि दोनों देशों को इससे फायदा ही होगा. वहीं, किसी को कुछ नुकसान होगा तो है मीडिल ईस्ट के अरब देश.

दरअसल, अमेरिका दूसरे देशों से ज्यादा सामान खरीदता है, लेकिन बेचता कम है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका एक साल में 10 अरब डॉलर का सामान खरीदता है, लेकिन बेचता सिर्फ पांच अरब डॉलर का ही है. ऐसे में साल 2024 में अमेरिका का कुल ट्रेड डेफेसिट 982 बिलियन डॉलर था. इसके अलावा, गुड्स में अमेरिका को 2 ट्रिलियन डॉलर का घाटा हुआ, जबकि सर्विस सेक्टर 287 बिलियन डॉलर का फायदा हुआ.

भारत ने क्‍यों चुना क्रूड ऑयल का रास्‍ता?

अमेरिका को सबसे अधिक नुकसान चीन, मैक्सिको और वियतमान के साथ हुआ.  वहीं, भारत के के साथ भी उसे 5 बिलियन डॉलर का घाटा हो रहा था. वहीं भारत सरकार अब इस घाटे को खत्म करने की तैयारी में है, जिसके लिए उसने क्रूड ऑयल का रास्‍ता चुना है.

बता दें कि मार्च 2025 में भारत ने अमेरिका से कच्चा तेल आयात 67 प्रतिशत तक  बढ़ा दिया है. फरवरी के मुकाबले मार्च में भारत ने अमेरिका को क्रूड के अधिक आयात किया. दरअसल, फरवरी में भारत ने अमेरिका से प्रतिदिन 146,000 बैरल कच्चा तेल आयात किया था. साथ ही रूस से भी तेल की खरीद बढ़ा दी.  ऐसे में भारतीय रिफाइनर कंपनियों ने मार्च में रूसी तेल के आयात को 480,000 बैरल बढ़ाकर 1.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन कर दिया, जबकि एक महीने पहले यह 1.47 मिलियन बैरल प्रतिदिन था.

अमेरिका को फायदा देने के लिए भारत ने किया ये काम

वहीं, मार्च में भारत ने इराक से 17 प्रतिशत, सऊदी अरब से 16 प्रतिशत, यूएई से 1 प्रतिशत कम क्रूड लिया. भारत द्वारा की गई ये कटौती अमेरिका को फायदा देने के लिए की गई. दरअसल, पिछले एक साल में कच्चे तेल की कीमत में बहुत उतार-चढ़ाव रहा है. ब्रेंट क्रूड का 52-सप्ताह का उच्चतम स्तर 92.18 डॉलर प्रति बैरल से अधिक था, जबकि 52-सप्ताह का न्यूनतम स्तर 68.33 डॉलर था, जो मौजूदा कीमत से 8% से थोड़ा अधिक है.

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