US: 2.5 लाख डॉक्यूमेंटेड ड्रीमर्स पर खतरा! यूएस प्रशासन से सांसदों ने लगाई मदद की गुहार

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

US: अमेरिका में एक बार डॉक्यूमेंटेड ड्रीमर्स पर खतरा मंडराने लगा है. यहां माता-पिता के वीजा पर रह रहे ढाई लाख से अधिक बच्चों निकलने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, इनमें ज्‍यादातर भारतीय छात्र शामिल है. वहीं, दशकों से इनके माता पिता ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे है, जिससे उन्‍हें स्‍थायी रूप से US में रहने की अनुमति‍ मिल सके.

क्या है डॉक्यूमेंटेड ड्रीमर्स?

बता दें, डॉक्यूमेंटेड ड्रीमर्स वर्ड का उपयोग उन बच्‍चों के लिए किया जाता है,जो एच-1 बी कामगारों समेत दीर्घकालीन गैर आव्रजक वीजाधारकों पर आश्रित होते हैं,साथ ही जबतक वो 21 साल के नहीं हो जाते. यहीं वजह है कि अमेरिका में हजारों भारतीय बच्चों पर खतरा मंडरा रहा है. हालांकि इस मामले के मद्देनजर 43 सांसदों के एक द्विदलीय समूह ने बाइडन प्रशासन से ड्रीमर्स की सुरक्षा के लिए तुरंत कार्रवाई करने की अपील की है.

कानूनी दर्जे के साथ पले-बढ़े होने के बावजूद…

दरअसल, सांसदों ने इस मामले को लेकर गृह सुरक्षा सचिव एलेजांद्रो मयोरकास और अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (USCIS) के निदेशक उर एम जादौ को एक पत्र लिखा है. पत्र में उन्‍होंने कहा है कि अमेरिका में कानूनी दर्जे के साथ पले-बढ़े होने के बावजूद भी दीर्घकालिक वीजा धारकों के बच्चे 21 साल की आयु होने पर अपनी आश्रित स्थिति से बाहर हो जाते हैं. ऐसे में अगर वो नई नीति में नहीं आ पाते हैं तो उनके पास अमेरिका छोड़ने के सिवा और कोई चारा नहीं रह जाता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनके परिवारों के आवेदन पर ध्यान नहीं दिया जाता है.

स्व-निर्वासन के लिए हर साल होना पड़ता है मजबूर

सांसदों ने पत्र में आगे लिखा कि ये युवा अमेरिका में बड़े होते हैं, अमेरिकी स्कूल प्रणाली में ही अपनी शिक्षा पूरी करते हैं इसके साथ ही अमेरिकी संस्थानों के ही डिग्री से स्नातक होते हैं और उस वक्‍त तक इनके परिवार ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार करते रहते हैं. उन्‍होंने कहा कि हम इस मामले को लेकर लोगों को स्थाई रूप से संरक्षित करने के लिए समाधान खोज रहे हैं, लेकिन  द्विदलीय और द्विसदनीय अमेरिका के बाल अधिनियम 2023 के तहत हम आपसे उन हजारों बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रशासनिक कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं, जिन्हें हर साल खुद के निर्वासन के लिए मजबूर किया जाता है.’

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