US-Saudi Arab Relations: सऊदी अरब ने ब्रिक्स समूह में शामिल होने के अपने फैसले को स्थगित कर दिया है. यह बयान क्रेमलिन के विदेश नीति सलाहकार यूरी उशाकोव के हवाले से रूसी मीडिया ने दी है. बता दें कि मौजूदा समय में ब्रिक्स की अध्यक्षता रूस के पास है.
दरअसल, ब्रिक्स समूह में ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका शामिल है. वहीं, इस समूह में विस्तार के लिए साल 2023 में सऊदी अरब, मिस्र, ईरान, यूएई और इथोपिया को सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया था. ऐसे में ये सभी आमंत्रित देश ब्रिक्स के सदस्य बन चुके हैं, लेकिन सऊदी अरब ने अभी तक इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है.
डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को दी थी चेतावनी
सऊदी अरब की ओर से ये फैसला ऐसे समय में आया है, जब हाल ही में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को चेतावनी दी थी कि यदि वो अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में अपनी करेंसी का इस्तेमाल करते हैं, तो अमेरिका इन देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा. ट्रंप अपने इस बयान के वजह से लंबे समय से ब्रिक्स के आलोचक रहे हैं. वहीं, उनका यह बयान वैश्विक राजनीति में डॉलर की स्थिति और ब्रिक्स के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंताओं को उजागर करता है.
सऊदी अरब और ब्रिक्स के बीच अनौपचारिक संबंध
बता दें कि सऊदी अरब ने कुछ समय के लिए ब्रिक्स के साथ अनौपचारिक रूप से भागीदारी की थी, लेकिन अभी तक वो इस समूह का पूर्ण सदस्य नहीं बन पाया है. इस संबंध में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले ही उसने अपना एक बयान वापस ले लिया था, जिसमें सऊदी अरब को ब्रिक्स का सदस्य बताया गया था.
इसी बीच क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सऊदी अरब का प्रतिनिधित्व शिखर सम्मेलन में होगा या नहीं, यह जानकारी बाद में साझा की जाएगी.
इन कारको पर निर्भर होगा सऊदी अरब का भविष्य
जानकारों का मानना है कि सऊदी अरब का ब्रिक्स में शामिल न होना कई कारकों पर निर्भर हो सकता है, जो निम्न है:-
- अंतरराष्ट्रीय राजनीति: अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ सऊदी अरब के संबंध.
- आर्थिक प्राथमिकताएं: ब्रिक्स की मुद्रा या वित्तीय नीतियों का सऊदी की अपनी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव.
- सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग: रूस और चीन जैसे ब्रिक्स देशों के साथ सऊदी अरब के रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में संबंध.
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