Venezuelan president: वेनेजुएला एक बार फिर से निकोलस मादुरो के राष्ट्रपति बनने से देश में सियासी घमासान मचा हुआ है. विरोधियों का कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव में हार के पुख्ता सबूत होने के बाद भी मादुरो ने राष्ट्रपति की शपथ ली, लेकिन अमेरिका इन आरोपों को लगातार नजरअंदाज करता आ रहा है और ऐसे में ही उन्होंने प्रतिबंधों में दी गई ढील को जारी रखा है.
साल 2022 में हुआ था ये समझौता
दरअसल, साल 2022 में देश के लिए कुछ अच्छे संकेत दिखाई दिए थे. इस दौरान राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने कई वर्षो के तानाशाही शासन और आर्थिक प्रतिबंधों के बाद लोकतांत्रिक राष्ट्रपति चुनाव कराने पर सहमति दी थी, जिसके बदले अमेरिका के व्हाइट हाउस ने मादुरो सरकार को आर्थिक मदद दी थी, जिसके तहत, अमेरिकी ऊर्जा कंपनी शेवरॉन को वेनेजुएला के तेल को निकालने और निर्यात करने की अनुमति दी गई थी.
वेनेजुएला को मिली थी संजीवनी
अमेरिका के इस मदद से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को एक संजीवनी मिली थी, क्योंकि इससे तेल का निर्यात फिर से शुरू हो गया था. वहीं, वेनेजुएला में मादुरो द्वारा किए गए चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं माना गया. क्योंकि कुछ लोगों का कहना है कि चुनाव में हार के बावजूद मादुरो ने 10 जनवरी 2025 को तीसरी बार वेनेजुएला के राष्ट्रपति पद की शपथ ली.
विपक्षियों ने लगाए आरोप
विपक्षी दलों के साथ ही कई देशों ने भी मादुरो की चुनावी जीत पर सवाल उठाए. उन्होंने आरोप लगाया कि मादुरो ने चुनाव जीतने के लिए धांधली की. हालांकि इस विरोध के बाद भी व्हाइट हाउस ने शेवरॉन को दी गई अनुमति को खत्म नहीं किया. मादुरो के विरोधियों का कहना है कि अमेरिका द्वारा दिए गए इस ढील से वेनेजुएला सरकार ने अरबों डॉलर कमाए, लेकिन इसके बावजूद भी अमेरिकी सरकार ने इस फैसले को बदलने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
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