Wolf Protection: भारत में उत्तर प्रदेश के बहराइच जिलें में पिछले दो महीनों से आदमखोर भेड़ियों का खौफ बना हुआ है. अब तक करीब दर्जनभर लोगों को भेड़ियों ने अपना निशाना बनाया है. कुछ इसी प्रकार अब यूरोप में भी भेड़ियों का आंतक फैला हुआ है. दरअसल 1970 के दशक में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके भेड़ियों को बचाने के लिए यूरोपीय संघ ने उन्हें संरक्षित प्रजातियों की लिस्ट में डाला था. लेकिन अब जब उनकी संख्या ठीक हो गई है. ऐसे में संघ उनकी देख रेख के नियमों में ढ़ील दे रहा है. यह बदलाव शिकार के कड़े नियमों को आसान करेगा.
यूएन संघ के नियमों में बदलाव के पीछे किसानों की शिकायतें बताई जा रही है. किसानों का कहना है कि बढ़ती भेड़ियों की संख्या उनके मवेशियों के लिए खतरनाक हो रहा है, भेड़िये उनके जानवरों को खा रहे हैं. हालांकि यूरोपीय संघ के इस फैसले का पर्यावरण समूहों और एक्टिविस्टों ने विरोध किया है. उनका कहना है कि भेड़ियों की संख्या बढ़ी है,लेकिन अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है.
भेड़ियों के प्रोटेक्शन लॉ की समीक्षा
यूरोप में भेड़ियों की आबादी 2023 तक करीब 20,300 थी, जिसमें 23 देशों में प्रजनन समूह मौजूद हैं. ऐसे में यूरोपीय आयोग की चीफ उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने पहले ही कहा था कि भेड़ियों के प्रोटेक्शन लॉ की समीक्षा की जाएगी. उन्होंने कहा था कि कुछ यूरोपीय क्षेत्रों में भेड़ियों के झुंड एक बड़ा खतरा बन गया है, खासकर पशुओं के लिए.
पर्यावरण समूहों का विरोध
हालांकि डेर के इस फैसले का विरोध करते हुए पर्यावरण समूहों ने कहा कि भेड़ियों की संख्या में भले ही बढ़ोतरी हुई है, लेकिन आबादी अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है. वहीं, पर्यावरण समूह WWF के वरिष्ठ नीति अधिकारी सबियन लीमन्स ने कहा कि वो इसे राजनीति से प्रेरित प्रस्ताव मानते हैं जो बिल्कुल भी विज्ञान पर आधारित नहीं है. इसके अलावा करीब 300 समूहों द्वारा साइन किए गए एक विरोध पत्र में भी कहा गया है कि भेड़ियों की समस्या शिकार से खत्म नहीं होगी.
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