नई दिल्ली। बिना आईडी के 2,000 रुपये के नोट बदलने की अनुमति देने वाली आरबीआई की अधिसूचना के खिलाफ दायर की गई जनहित याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दायर की थी। अब दिल्ली हाईकोर्ट से निराशा हाथ लगने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
कोर्ट में दायर याचिका में आरबीआई के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि सरकार का यह फैसला मनमाना है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। सारी दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति सतीश चंदर शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने इसे खारिज कर दिया था।
मालूम हो कि भारतीय रिजर्व बैंक ने 19 मई को 2000 रुपये का नोट वापस लेने की घोषणा की थी। इसके साथ ही 23 मई 2023 से 30 सितंबर 2023 तक नोट को बैंकों में जमा करने या अन्य नोट से बदलने की सुविधा दी थी। साथ ही आरबीआई ने अधिसूचना में कहा था कि इस दौरान 2000 रुपये का नोट लेन-देन के लिए वैध रहेगा। वहीं, एसबीआई ने ग्राहकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए बिना किसी पहचान प्रमाण, मांग पर्ची या फॉर्म भरे नोट बदलने की सुविधा देने की अनुमति बैंक शाखाओं को दी थी।
दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सतीश कुमार शर्मा व जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने सोमवार को बिना अर्जी व बिना पहचान पत्र के 2,000 रुपये के नोट बदलने की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। बीजेपी नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका में भारतीय रिजर्व बैंक व भारतीय स्टेट बैंक की अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा था कि बड़ी संख्या में 2,000 रुपये के नोट या तो व्यक्तिगत लॉकर में पहुंच चुके हैं अथवा उन्हें अलगाववादियों, आतंकियों, नक्सलियों, ड्रग तस्करों, खनन माफिया व भ्रष्ट लोगों ने जमा कर लिया है।