भारतीय शास्त्रीय संगीत का ‘मैक्डोनाल्डीकरण’

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मैकडॉनल्ड.. कम से कम अंग्रेजी बोलने वाला हर शख्स अपने ऑफिस से घर आते वक्त या डिनर में एक बर्गर या कुछ फ्रेंच फ्राइस जरूर खाया होगा. लेकिन, सवाल ये है कि यह एक समाज के लिए इतना प्रासंगिक क्यों हो चुका है? दरअसल, इसका जवाब भी ‘मैकडॉनल्ड’ नाम में छिपा है. जॉर्ज रिट्जर ने इस (मैक्डॉनल्ड) शब्द की व्याख्या की है. उनके मुताबिक फास्ट फूड रेस्टोरेंट मुख्य रूप से एफिशिएंसी, कैलकुलेबिलिटी, प्रिडिक्टबिलिटी और कंट्रोल के सिद्धांत पर निर्भर करते हैं. इसी सूत्र के जरिए ये दुनिया के अधिकांश सेक्टरों में हावी हैं. खास बात ये है कि यह (मैकडॉनल्ड) सिद्धांत भारत की संस्कृति और इसके संगीत में काफी हद तक प्रासंगिक है.

भारतीय शास्त्रीय संगीत का अतीत

संगीत को हमेशा सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और पहचान के एक बड़े घटक के तौर पर देखा जाता है. मानव विकास के शुरुआत से ही संगीत लोगों और उनके जीवन के तरीके से जुड़ा हुआ है. भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत अपने आप में भारतीय शास्त्रीय गायन या हिंदुस्तानी शास्त्री संगीत की सुंदरता को समेटे हुए है. लेकिन इस सदियों पुरानी कला के अस्तित्व को लेकर सवाल यह उठता है कि क्या यह आज के समाज और संस्कृति में अभी भी प्रासंगिक है और इसके अभी भी अस्तित्व में रहने का क्या महत्व है? क्या यह अब भी पहले की तरह ही प्रभावशाली है.

भारत का औपनिवेशीकरण

विदेशियों ने भारत पर राज किया. कहीं न कहीं अतीत में यह भारत का पसंदीदा शौक भी था, लेकिन हमने स्वतंत्रता के लिए काफी संघर्ष किया. अब हम बिल्कुल स्वतंत्र हैं, है ना? अगर ये दावा किया जाए कि हमारे संगीत और कलात्मक क्रिया पर अब भी पश्चिमी प्रभाव है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. पश्चिमी देशों में ही फास्ट फूड कंपनी मैकडॉनल्ड्स का अविष्कार किया गया. हम निश्चित रूप से इस तथ्य पर विश्वास नहीं कर सकते हैं कि पश्चिमी देशों के लोग हमें आज भी हीन भावना से देखते हैं.

अतीत से वर्तमान तक

प्राचीन काल से ही भारतीय संगीत की कला ने खुद को भारतीय जीवनशैली का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है. सिरदर्द और हृदय रोगों को ठीक करने के लिए रागों का उपयोग से लेकर मनोरंजन तक, स्वतंत्रता के लिए प्रयास से लेकर संगीत परंपराओं को एकीकृत करने तक. भारतीय संगीत दुनियाभर में फैली हुई है. भारतीय संगीत परंपरा ने केंद्र बिंदु के रूप में कार्य किया है. भारतीय संगीत को संतों से लेकर वर्तमान पीढ़ी तक पारित किया गया है. इसे जेन-जेड के नाम से भी जाना जाता है.

भारतीय शास्त्रीय संगीत का वर्तमान में स्थिति

एक आम आदमी की नजर से वर्तमान पीढ़ी को देखने पर पता चलता है कि Gen-Z बच्चे वर्चुअल रियलटी में रह रहे हैं. माने एक ऐसी वास्तविकता जिसमें दुनियाभर के लाखों-करोड़ों लोग संगीत से जुड़े हैं. जिन्हें समझना आसान होता है. जिसे समझने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं होती है. ऐसी चीजें जिसके लिए धैर्य की आवश्यकता नहीं होती है. कहीं न कहीं यह हमें यह जानने के लिए प्रेरित करती है कि हमारे संगीत के अवशेष अब लुप्त होते जा रहे हैं. अब जो संगीत है वो आधुनिक और वैश्विक कला के रूप हैं.

संगीत संस्कृतियों का मिश्रण

इसके अलावा भारतीय जेन-जेड अपनी संस्कृति के संगीत को और अधिक “दिलचस्प” बनाने के लिए शास्त्रीय बंदिश के अंशों को रैप, अंग्रेजी गीत, या ईडीएम ट्रैक बीट्स के साथ मिलाकर इसे “उत्साहित” बनाने के तरीके भी खोजे हैं. भारतीय शास्त्रीय गायन की सुंदरता धीमी से तेज और तेज से धीमी तक लय की पारगमन गति है. किसी भी कला को मानव मस्तिष्क की समझ में आने के लिए धैर्य, शांति और खुले दिमाग की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे प्रशिक्षित किया जाता है और इससे कई लाभ मिलते हैं. यह ग्रुप अपने फ़ास्ट फ़ूड या फ़ास्ट 5G डेटा प्लान का इतना आदी हो गया है कि वे उस संगीत को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, जिसे वे अपने समय और धैर्य का थोड़ा सा हिस्सा लेकर संरक्षित और संजोकर रखना चाहते हैं.

‘मैकडॉनल्डाइज़ेशन’ के साथ समस्या क्या है?

इस विविधतापूर्ण दुनिया में हमारी संस्कृति ही है जो हमें एक साथ लाती है और एकजुट होने का एहसास कराती है. लेकिन भारतीय युवा, अपनी समृद्ध और सुंदर इतिहास पर गर्व करने के बजाय, ‘मैकडॉनल्डाइज़्ड’ दुनिया के साथ फिट होने और ‘ट्रेंडी’ बनने के लिए आसान-से-रजिस्टर संगीत’ के साथ दिमाग के आराम और सहजता की तलाश में इससे दूर भागते नजर आते हैं. अमेरिकी संस्कृति का प्रभाव इनदिनों हमारे देश के युवाओं के संगीत स्वाद में एक अलग स्तर पर देखा जा रहा है, जिसका पूरा श्रेय ‘रील’ और ‘शॉर्ट्स’ वीडियो को देना कहीं से भी गलत नहीं होगा.

शास्त्री संगीत का महत्व

संगीत और साहित्य क्रांतियों को जन्म दे सकते हैं और उसे मिटा भी सकते हैं. ठीक उसी तरह जिस तरह वंदे मातरम और जन गण मन ने भारत को अपनी आजादी के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया और लोगों को एहसास कराया कि वे सभी एक राष्ट्र के हैं, और वह उनकी मातृभूमि है. भारतीय परंपरा में, संगीत और नृत्य जैसी गतिविधियां न केवल मनोरंजन का साधन थीं, बल्कि वे आध्यात्मिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं. रागों और धुनों सहित भारतीय शास्त्रीय संगीत में ध्वनि का उपयोग इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि लोग इससे आकर्षित हो सके. भारतीय शास्त्रीय संगीत में वो शक्ति है कि मन, शरीर और आत्मा पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों की सटीक पहचान कर सकता है. इन ध्वनियों को एक विशेष तरीके से समझने और व्यवस्थित करने से व्यक्तियों और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. कुछ कुशल संगीतकारों को इसका अनुभव होता है.

आज के दौर में भारतीय संगीत

बताते चलें कि अब भारतीय शास्त्रीय संगीत का परिदृश्य एक अलग मोड़ ले चुका है. यह कहानी उस समय की है जब एक कला सबको आती थी और जिसका सभी लोग आनंद लेते थे, लेकिन आज के अधिकांश युवाओं और बच्चों के लिए यह एक विदेशी शब्द बन गया है. अर्थ से भरपूर एक कला, जिसे सभी को सिखाया जाता था, आज के नए जमाने में केवल कुछ ही लोग जानते हैं. जब कोई इस पीढ़ी के बच्चे से उनकी संस्कृति के बारे में सवाल पूछता है, तो उन्हें तुरंत उत्तर की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, लेकिन अगर उनसे पूछा जाए कि संयुक्त राज्य अमेरिका में कौन से गाने चलन में हैं, तो उनके ज्ञान को देखकर, सुनकर वो भौचक्के रह जाएंगे.

(17 वर्षीय उभरती हुई राइटर भारतीय शास्त्रीय गायन और कथक में डिप्लोमा धारक हैं. लंदन में अपना शैक्षणिक करियर शुरू करते हुए वह लिबरल आर्ट्स में स्नातक की पढ़ाई करने वाली हैं. आरके पुरम (2022-2023) स्थित डीपीएस की हेड गर्ल ऊर्जा, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत कल्चरल टैलेंट सर्च स्कॉलरशिप स्कीम के तहत भारतीय शास्त्रीय गायन में नेशनल स्कॉलरशिप होल्डर रही हैं. साइकोलॉजी, सोशियोलॉजी और क्रिमिनोलॉजी के साथ-साथ संगीत और संस्कृति के प्रति गहरी रुचि रखने वाली ऊर्जा विलक्षण प्रतिभा के साथ अपने सपनों की आकाशगंगा को और विस्तार देने में जुटी हुई हैं.)

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