लावारिस शवों की वारिस है UP की ये बेटी, 2 हजार से ज्यादा अंतिम संस्कार कर बनाया रिकॉर्ड; मिला ये अवार्ड

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वरुण शर्मा/मुजफ्फरनगर : उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की बेटी शालू सैनी पिछले 3 वर्षो से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर रिकॉर्ड बनाया है. 3 वर्षो में अब तक दो हजार से ज्यादा लवारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी है. खास बात यह है की शालू सैनी न सिर्फ हिंदू के शमशान घाट पर शवों का अंतिम संस्कार करती है, बल्कि मुस्लिम समाज के कब्रिस्तान जाकर भी लावारिस शवों को सुपुर्द ए खाक करने का काम भी करती है. शालू की प्रतिभा को देखते हुए जीनियस वर्ल्ड रिकॉर्ड नाइजीरिया अवार्ड से स्मानित किया गया है.

हर कोई कर रहा शालू की सराहना
दरअसल, मुजफ्फरनगर शहर की बेटी शालू सैनी पिछले 3 वर्षो से लावारिस शवों की वारिस बनकर उनका अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाए हुए है. महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही शालू सैनी ने धर्म जात से अलग हटकर बिना भेदभाव किये अंतिम संस्कार कर शालू सैनी हिन्दू मुस्लिम भाई चारे की मिसाल पेश कर रही है. आज हर कोई क्रांतिकारी शालू सैनी के जज्बे की सराहना कर रहा है. साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्ष क्रांतिकारी शालू सैनी की मुहिम की हर कोई प्रशंसा कर रहा है. शालू सैनी पिछले 3 वर्षो में अभी तक लगभग 2 हजार से ज्यादा लावारिस शवों की वारिस बनकर उनका अंतिम संस्कार कर चुकी है. शालू सैनी अंतिम संस्कार में होने वाले खर्चे को भी स्वयं वहन करती हैं. शालू सैनी की इस प्रतिभा को देखते हुए उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के साथ साथ शनिवार दोपहर जीनियस वर्ल्ड ऑफ रिकॉर्ड से सम्मानित किया गया है.

कोरोना काल में दिया था साहस का परिचय
कोरोना की दूसरी लहर में शमशान घाट पर धधकती चिताएं आज भी लोगों में दहशत का वो दौर याद दिला देती हैं. कोरोना संक्रमण लगने के डर से जहां अपनों ने ही अपने मृतकों का साथ छोड़ दिया था, वहां शहर के कुछ लोग मानवता की मिसाल पेश करने आगे आए थे. साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की संचालक क्रांतिकारी शालू सैनी ने उस समय बड़ा योगदान देकर लोगों के भीतर से डर निकालने का प्रयास कर अपने साहस का परिचय दिया था. कोरोना काल में उन्होंने श्मशान घाट के अंदर जाकर उन परिवारों के लिए नायिका की भूमिका निभाई थी, जिन्होंने उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने से हाथ खड़े कर लिए थे.

विधि विधान से होती है अंतिम संस्कार की सभी प्रक्रिया
कोरोना काल से शुरू की ये मुहीम आज भी शालू सैनी तमाम बाधाओं के बाद निरंतर जारी रखे हुए हैं. शालू सैनी आज उन लावारिस शवों की वारिस बनकर ना सिर्फ उनका अंतिम संस्कार कर रही हैं, बल्कि मृतकों के धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार में की जाने वाली सभी कार्यो को विधि विधान से कर रही हैं. 38 वर्षीय शालू सैनी सिंगल मदर हॉउस वाइफ हैं और झाँसी रानी मार्किट के बाहर ठेली पर छोटे बच्चो के कपडे बेच कर अपने परिवार का पालन पोषण करती हैं.

जल्द ही मिलेगा गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में जगह
21वीं सदी में जहां लोग धरती से चंद्रमा और मंगल ग्रह तक पहुंच गए हैं, लेकिन आज भी भारतवर्ष में श्मशान घाट और कब्रिस्तान में महिलाओं के प्रवेश को लेकर कुप्रथा चली आ रही हैं. इसके बावजूद मुजफ्फरनगर की बेटी शालू सैनी इन सभी मिथक को तोड़ कर ना सिर्फ महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन रही हैं, बल्कि अपने जनपद मुजफ्फरनगर का गौरव बढ़ा रही हैं. शालू सैनी के इस जज्बे को ना सिर्फ मुजफ्फरनगर बल्कि पश्चिम पश्चिमी उत्तर प्रदेश सलाम करता है. शालू सैनी की अनोखी मुहिम को देखते हुए उनकी प्रतिभा को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल किया गया है. लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की यह मुहिम जल्दी ही गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल हो जाएगी.

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