Atiq Ashraf Murder: गुनाहों की भेंट चढ़ गई माफिया अतीक-अशरफ की मौत के बाद की रस्में, एक फूल को तरस गए कब्र

प्रयागराज। तुमने क्यो चूनी ऐसी राह, जिस राह पर पल-पल में मौत से सामना होने की संभावनाएं है, जिसका खौफनाक अंत होना तय है और अंत ऐसा भी, जिसे परिवार के लोग ताउम्र नहीं भूल पाए और तमाम लोग ये कहे कि ऐसे लोगों का अंत होना ही चाहिए। लेकिन इससे बड़ा दर्द और क्या होगा कि किसी की मौत होने पर परिवार के लोग उसकी अर्थी को कांधा न दे पाए और मौत के बाद होने वाली अन्य रस्मों पर भी अपराध की काली छाया पड़ जाए। जी हां, हम बात कर रहे हैं माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की, जिन्हें बदमाशों ने अपने गोली का निशाना बनाते हुए मौत की नींद सुला दिया था। जरायम जगत से अतीक और अशरफ के रिश्ते ने परिवार के लोगों के खुशहाली के रास्ते को बंद कर दिया है।

गुरुवार को अतीक और उसके भाई अशरफ का चालीसवां था, लेकिन अपराध की काली छाया की वजह से न तो दोनों भाइयों के कब्र को एक फूल तक नसीब नहीं हुआ और न ही कसारी-मसारी कब्रिस्तान में कोई फातेहा पढ़ने आया और न ही चादरपोशी हुई। इतना ही नहीं, पुश्तैनी मकान पर भी सन्नाटा छाया रहा।

यहां तक कि फरार चल रही अतीक की बीवी शाइस्ता परवीन और अशरफ की बीवी जैनब का भी चालीसवां पर कुछ अता-पता नहीं चला। परिवार के लोग भी सभी रस्मों को दरकिनार करते हुए दूरी बनाए रहे। मालूम हो कि बीते 15 अप्रैल की रात माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ की तीन बदमाशों ने उस समय गोली मारकर हत्या कर दिया था, जब उन्हें पुलिस कस्टडी में मेडिकल परीक्षण के लिए जाया जा रहा था।

गुरुवार को दोनों भाइयों का चालीसवां था। इससे लोगों में इस बात की चर्चा थी कि रस्मों के अनुसार, आज के दिन कब्र पर फूल चढ़ाने व फातिहा पढ़ने के लिए अतीक-असरफ के परिवार के लोग और करीबी कसारी-मसारी कब्रिस्तान आ सकते हैं। इन चर्चाओं के बीच यह सुगबुगाहट भी थी कि सुपुर्दे खाक में शामिल न हो पाने वाली अतीक की बीवी शाइस्ता व अशरफ की बीवी जैनब चालीसवें पर होने वाली रस्मों को अदा करने के लिए कब्रिस्तान पहुंच सकती हैं।

यह अटकलें निराधार साबित हुईं। कब्रिस्तान में दिनभर सन्नाटा छाया रहा। शाइस्ता व जैनब तो दूर, माफिया भाइयों के करीबी व मोहल्ले के लोग भी नहीं आए। उधर, चकिया स्थित अतीक के पैतृक मकान पर भी सन्नाटा छाया रहा। न ही कोई रिश्तेदार आया, न ही पास-पड़ोस के लोग ही पहुंचे।

मालूम हो कि मुस्लिम समुदाय में किसी के इंतकाल के चालीसवें दिन कब्र पर पहुंचकर फूल चढ़ाने के साथ ही फातिहा पढ़ने का रस्म हैं। घर में धार्मिक ग्रंथ का पाठ और गरीब, यतीम और मिसकीन को खाना खिलाकर कपड़े व बर्तन दान किए जाते हैं।

ससुराल पक्ष के लोग भी नहीं आए

लोग यह कयास लगा रहे थे कि अतीक-अशरफ के चालीसवें पर अतीक और अशरफ के ससुराल पक्ष के लोग सामने आएंगे लेकिन वह भी नहीं आए। उनका न आना लोगों में चर्चा का विषय बना रहा। जबकि सुपुर्द-ए-खाक के दौरान अतीक के ससुर हारुन व बहनोई उस्मान अहमद अन्य परिजनों के साथ कब्रिस्तान में मौजूद थे।

कुल मिलाकर अपराध का दायरा चाहे जितना भी फैला हो, लेकिन एक न एक दिन इसका सिमटना तय है। यह कहना गलत नहीं होगा कि तुमने क्यों चुनी ऐसी राह, जिसकी मंजिल मौत या फिर जेल की सलाखे है। अपराध के बादशाहत की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन ऐसी बादशाहत किस काम की, कि इस दुनिया से रुख्सत होने के बाद हमारे कब्र को न तो एक फूल नसीब हो और न ही हमारे परिवार के लोग अन्य रस्में अदा कर सके।

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