Moon’s South Pole: भारत 23 अगस्त को इतिहास रचने के लिए चंद्रमा के बेहद करीब पहुंच गया है. चंद्रयान के लॉन्चिंग के दौरान चारों तरफ तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी थी. आज पूरा हिंदुस्तान उस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, जब भारत चांद के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ़्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बन जाएगा. दुनिया का कोई भी देश इस हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल नहीं हो पाया है, लेकिन यह प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों सभी देश चांद के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचना चाहते हैं. आइए हम आपको बताते हैं इसके पीछे की वजह.
अगर भारत इस मिशन में कामयाब होता है, तो वह चंद्र जल बर्फ के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेगा. यह चंद्रमा के सबसे कीमती रिसोर्सेज में से एक है. लगभग सभी अंतरिक्ष एजेंसियां इसे चंद्रमा कॉलोनी और मंगल ग्रह पर संभावित मिशनों के समाधान के रूप में देखती हैं.
चंद्रमा पर पानी की संभावना
वैज्ञानिकों ने पहली अपोलो लैंडिंग से पहले यह अंदाजा लगाया था कि चंद्रमा पर पानी के मौजूद होने की संभावना हो सकती है, लेकिन 1970 के दशक की शुरुआत में अपोलो क्रू द्वारा छानबीन करने के दौरान लौटाए गए नमूने सूखे प्रतीत हुए.
ब्राउन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ने 2008 में, नई टेकनोलॉजी के साथ उन चंद्र नमूनों की दोबारा जांच की और ज्वालामुखीय कांच के छोटे मोतियों के अंदर हाइड्रोजन मौजूद मिला. ISRO ने 2009 में चंद्रयान-1 पर लगे नासा के एक यंत्र ने चंद्रमा के सर्फेस पर पानी के मौजूद होने का पता लगाया.
2009 में ही, नासा के एक दूसरे रिसर्चर ने, चंद्रमा के सर्फेस के नीचे पानी की बर्फ पाई. नासा के पहले के मिशन, 1998 के लूनर प्रॉस्पेक्टर ने इस बात की पुष्टी कि थी कि पानी में बर्फ का सबसे अधिक घनापन साउथ पोल के छायादार गड्ढों में पाई गई थी.
चंद्रमा पर क्यों महत्वपूर्ण है पानी?
वैज्ञानिकों की रुचि प्राचीन जल बर्फ में अधिक है क्योंकि यह चंद्र ज्वालामुखियों, धूमकेतुओं और क्षुद्रग्रहों के कारण धरती पर पहुंचाई गई सामग्री और महासागरों के स्रोत का रिकॉर्ड बनाने में मददगार हो सकती है.
अगर पानी की बर्फ ज्यादा मात्रा में मौजूद है, तो यह उपकरणों को ठंडा करने में मदद कर सकता है और चंद्रमा की खोज के लिए पीने के पानी का एक स्रोत हो सकता है.
बर्फ को तोड़कर, सांस लेने के लिए ऑक्सीजन और ईंधन के लिए हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए भी उपयोग किया जा सकता है. जिससे मंगल ग्रह या चंद्र खनन के मिशनों को मदद मिल सकती है.
दक्षिणी ध्रुव को क्या पेचीदा बनाता है?
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अपेक्षित रूप से कम ठंडा इलाका है. यहां पर सूर्य की रोशनी कम पड़ती है, लेकिन इस हिस्से में अंधेरा भी कम रहता है. दक्षिणी ध्रुव भूमध्यरेखीय क्षेत्र से बहुत दूर है तथा गड्ढों और गहरी खाइयों से भरा है. यह हिस्सा काफी रहस्यमयी है जहां सभी देश पहुंचना चाहते हैं. अब तक कई देश स्पेस मिशन भेजे गए हैं. अगर भारत 23 अगस्त को चंद्रयान-3 मिशन में सफल हो जाता है तो वह इस हिस्से पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा.
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