Lodheshwar Mahadeva Mandir Barabanki: सावन का पावन महीना आज से शुरू हो गया है. हर शिव मंदिर में जलाभिषेक के लिए महादेव के भक्तों की भारी भीड़ सुबह से ही लगी है. सावन के पवित्र महीने में देश के अलग-अलग जगहों पर स्थापित भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है. वहीं 12 ज्योतिर्लिंगों के साथ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का पौराणिक लोधेश्वर महादेव मंदिर का अलग ही धार्मिक महत्व है, क्योंकि यह शिवलिंग महाभारत कालीन है, जिसकी स्थापना पांडवों द्वारा की गई है. ऐसी मान्यता है कि सावन महीने में यहां जलाभिषेक कर लेने मात्र से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है.
दरअसल, महाभारत कालीन इस शिव मंदिर में बाराबंकी जिले के रामनगर तहसील क्षेत्र में स्थित तीर्थ स्थल लोधेश्वर धाम महादेवा मंदिर के नाम प्रसिद्ध है. सावन का पहला दिन होने के चलते सुबह से ही शिव भक्तों की आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है. यहां चारों ओर हर-हर, बम-बम और ॐ नम: शिवाय के जयकारे गूंज रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां शिवलिंग को स्थापित किया था. जिसका नाम लोधेश्वर महादेवा पड़ा.
जलाभिषेक करने से पूरी होती है मनोकामना
सावन में विशेष महत्व के चलते देश के कई राज्यों से लाखों श्रद्धालु इस महाभारत कालीन शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए पहुंच रहे हैं. श्री लोधेश्वर महादेवा मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां जो भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और सावन में दर्शन पूजन के साथ जलाभिषेक करते हैं. महादेव उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं.
आपको बता दें कि लोधेश्वर महादेवा मंदिर में सावन के महीने में जलाभिषेक के लिए जिले के अलावा लखनऊ, बहराइच, कानपुर, उन्नाव, उरई, जालौन समेत कई जिलों से बड़ी तादात में शिव भक्त आते हैं.
जानिए क्या है मंदिर मान्यता
यहां स्थापित शिवलिंग को लेकर ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां करीब 12 वर्षों तक रुद्र महायज्ञ कर शिवलिंग को स्थापित किया था. मान्यता है कि लोधराम नाम के किसान अपने खेतों में पानी लगाए हुए थे. सिंचाई का सारा पानी एक गड्ढे में जा रहा था और वो गड्ढा पानी से भी नहीं भर रहा था. रात को किसान लोधराम परेशान होकर घर लौट आया और उन्होंने सपने में देखा, जिस गड्ढे में पानी जा रहा था, वहां भगवान शिवलिंग था. यह वही शिवलिंग था, जिसे माता कुंती महाभारत काल में पूजा-अर्चना करती थीं. मंदिर की स्थापना के बाद इसका नाम लोधेश्वर महादेवा पड़ा.