Caste Census In UP: क्या यूपी में लोकसभा चुनाव से पहले होगी जातिगत जनगणना, समझिए क्या है चुनावी गणित

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सत्य प्रकाश सिंह/लखनऊः 2024 लोकसभा चुनाव का समय जैसे जैसे करीब आ रहा है वैसे ही यूपी की राजनीति में जातीय जनगणना की मांग तेज होने लगी है. बीजेपी को छोड़कर सभी विपक्षी पार्टियों ने जातीय जनगणना की मांग को तेज कर दिया है. खासकर उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी ने सड़क से संसद तक जाति आधारित जनगणना कराये जाने की मांग को लेकर आंदोलन की तैयारी में है. लेकिन जातीय जनगणना लोकतांत्रिक परंपरा में कितना समीचीन है. ये इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब कोर्ट के आदेश के बाद बिहार सरकार ने प्रदेश में जाति आधारित जनगणना शुरु करा दी है लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में सरकार जातिगत जनगणना कराने से इनकार कर रही है.

सीएम योगी ने दिया संविधान का हवाला

यूपी विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सपा ने सदन में जाति आधारित जनगणना का मुद्दा उठा दिया. आजमगढ़ से सपा विधायक संग्राम सिंह यादव ने विधानसभा में जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया था. जिसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ तौर पर कहा कि राज्य में जातीय जनगणना कराने की योजना नहीं है, क्योंकि जनगणना का समस्त कार्य भारत सरकार कराती है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने संविधान की सातवीं अनुसूची का हवाला देते हुए कहा कि संघ सूची के क्रमांक 69 पर जनगणना का विषय अंकित है. भारत सरकार जनगणना अधिनियम 1948 एवं जनगणना नियमावली 1990 के अन्तर्गत पूरे देश में जनगणना का कार्य कराती है. दरअसल, समाजवादी पार्टी ने साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा ने जातीय जनगणना के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था. इसके अलावा पीडीए के लिए भी जाति आधारित जनगणना सपा अध्यक्ष की लिस्ट में सबसे ऊपर है.

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2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सभी विपक्षी पार्टियां लगातार जाति आधारित जनगणना की मांग कर रही हैं. बिहार में सत्तारुढ़ जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल को कोर्ट के आदेश के बाद सफलता मिल गई और वहां जातिगत जनगणना का काम शुरु हो गया है. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में पिछड़ों की राजनीति करने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी सपा की जातिगत जनगणना की मांग को यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने नकार दिया है. दरअसल, सपा इसे पीडीए के लिए काफी महत्वपूर्ण मान रही है. उत्तर प्रदेश में पिछड़ों का अच्छा वोट बैंक है, जिस पर समाजवादी पार्टी अपना पूरा हक समझती है और 2024 लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों पर पीडीए के जरिए कब्जा जमाना चाहती है. लेकिन बीजेपी जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं है. बीजेपी का तर्क है कि इससे समावेशी विकास नहीं होगा और संख्या में अधिक जातियों को ही इसका लाभ मिलेगा.

मायावती ने जातिगत जनगणना को लेकर किया ट्वीट

उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित वोट बैंक पर खासा पकड़ रखने वाली बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी जाति आधारित जनगणना का समर्थन किया है. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा,


1- ओबीसी समाज की आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का सही आकलन कर उसके हिसाब से विकास योजना बनाने के लिए बिहार सरकार द्वारा कराई जा रही जातीय गणना को पटना हाईकोर्ट द्वारा पूर्णतः वैध ठहराए जाने के बाद अब सबकी निगाहें यूपी पर टिकी हैं कि यहां यह जरूरी प्रक्रिया कब?

2- देश के कई राज्य में जातीय जनगणना के बाद यूपी में भी इसे कराने की मांग लगातार जोर पकड़ रही है, लेकिन वर्तमान बीजेपी सरकार भी इसके लिए तैयार नहीं लगती है, यह अति-चिंतनीय विषय है, जबकि बीएसपी की मांग केवल यूपी में नहीं बल्कि केंद्र को राष्ट्रीय स्तर पर भी जातीय जनगणना करवानी चाहिए।

3- देश में जातीय जनगणना का मुद्दा, मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने की तरह, राजनीति का नहीं बल्कि सामाजिक न्याय से जुड़ा महत्त्वपूर्ण मामला है. समाज के गरीब, कमजोर, उपेक्षित व शोषित लोगों को देश के विकास में उचित भागीदार बनाकर उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए ऐसी गणना जरूरी.

आखिरी बार जातिगत जनगणना कब हुई थी

जातिगत जनगणना के इतिहास पर नजर डालें तो भारत में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना ब्रिटिश शासन के दौरान 1931 में हुई थी. 1941 में भी जातिगत जनगणना की गई, लेकिन इसके आंकड़े पेश नहीं किए गये. विपक्ष का कहना है कि 2011 में यूपीए सरकार के समय में भी जाति आधारित जनगणना की गई, लेकिन बाद में बीजेपी सरकार ने जाति आधारित आंकड़ों को पेश नहीं किया. जानकारों की मानें तो 1990 में लागू मंडल कमीशन की रिपोर्ट भी 1931 के जनगणना के आंकड़ों पर आधारित थे. इन्ही आंकड़ों के आधार पर ये माना जाता है कि भारत में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी है.

पूरे देश में जातिगत जनगणना की मांंग तेज

पूरे देश में खासकर हिन्दी भाषी राज्यों में बीजेपी को छोड़कर विपक्षी दलों ने जाति आधारित जनगणना की मांग तेज कर दी है. संविधान के अनुच्छेद 340 में सामाजिक और शैक्षिक रुप से पिछड़ों के लिए एक आयोग के गठन की बात की गई है, इससे साफ है कि हमारा संविधान भी जाति आधारित जनगणना कराने का पक्षधर है. लेकिन मण्डल कमीशन के बाद देश में उभरे राजनीतिक समीकरणों से निपटने के लिए बीजेपी ने हिन्दुत्व का दांव खेल दिया और राम मंदिर को अपना मुद्दा बना लिया, जिसमें न केवल पिछड़ी बल्कि सभी जातियां शामिल हैं. यही वजह है कि बीजेपी जाति आधारित राजनीति से बचना चाहती है और अपने हिन्दुत्व के रास्ते पर चलकर सबका साथ सबका विकास का एजेंडा अपना रही है. वहीं विपक्षी पार्टियां मुख्य रुप से पिछड़ों की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी अपनी खोई सियासी जमीन को किसी भी हाल में वापस पाना चाहती है.

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