Sai Baba Birthday: श्री साईंबाबा जिन्हें भारत में एक महान संत के रूप मे जाना जाता है, एक भारतीय गुरू, योगी और फकीर थे. आज उनके भक्त लाखों की तादात में हैं. साईं बाबा के भक्त ऐसा मानते हैं कि ये भगवान के अवतार थे. आज यानी 28 सितंबर को साई बाबा का जन्मदिवस मनाया जाता है. हालांकि साई बाबा के वास्तविक नाम, जन्म-स्थान के बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं है. इनके भक्तों का मानना है कि जो भी साईं बाबा पर विश्वास करता है, बाबा उनका कल्याण अवश्य करते है. इनकी भक्ति में हिन्दू-मुस्लिम का भेदभाव नहीं है. तो आईए साई बाबा से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानते है.
साई बाबा का जन्मदिन
साई बाबा के जन्म, स्थान को लेकर विद्वानों और इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका जन्म महाराष्ट्र के पथरी गांव में 28 सितंबर को हुआ था. लेकिन बाबा के जन्म को लेकर कहीं भी कोई प्रमाण नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि बस एक बार अपने एक भक्त के पूछने पर साईं ने कहा था कि, उनका जन्म 28 सितंबर 1836 को हुआ था. इसलिए हर साल 28 सितंबर को साईं बाबा का जन्मदिन मनाया जाता है.
साईं बाबा का धर्म
साईं बाबा को कोई हिन्दू मानता है, तो कोई मुस्लिम. लेकिन वे सभी धर्मों का आदर करने वाले एक चमत्कारी व्यक्ति थे. वो अपने पूरे जीवन में ”सबका मालिक एक” ही का जप करते रहे. बाबा सभी धर्मों के लोगों से हमेशा प्रेमपूर्वक मिलजुल कर रहने का आह्वान करते रहे. वे मुस्लिम टोपी पहनते थे, और उन्होंने अपनी जिंदगी के ज्यादातर समय महाराष्ट्र में स्थित शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में ही बिताए. वो उसे द्वारका माई कहा करते थे.
बचपन
साई बाबा के बारे में कहा जाता है कि इनका लालन-पालन एक मुसलमान फकीर ने किया था, लेकिन बचपन से ही किसी एक धर्म के प्रति उनकी एकनिष्ठ आस्था नहीं थी. कहा जाता है कि कभी वे हिन्दुओं के मंदिर में घुस जाते थे तो कभी मस्जिद में शिवलिंग की स्थापना करने लगते थे. उनके इन हरकतो से न तो गाँव के हिन्दू उनसे प्रसन्न थे और न ही मुस्लिम. बार-बार उनकी शिकायत आने के कारण उनको पालने वाले फकीर ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया.
माता-पिता
जन्मतिथि एवं स्थान की तरह ही साईं बाबा के माता-पिता के बारे में भी कोई ठोस प्रमाण नहीं है. कहा जाता है कि उनके पिता का नाम श्री गंगा बावड़िया एवं उनकी माता का नाम देवगिरि अम्मा था. ये दोनों शिव-पार्वती के उपासक थे. जब साईं अपनी मां के गर्भ में थे, उसी समय उनके पिता के मन में ब्रह्म की खोज में अरण्यवास की अभिलाषा तीव्र हो गयी और वे अपना सब कुछ त्याग कर जंगल की ओर निकल पड़े. उनके साथ उनकी पत्नी भी निकल पड़ी थी. मार्ग में ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था और पति के आदेश के मुताबिक उसे वृक्ष के नीचे छोड़ कर चली गयी थी. एक मुस्लिम फकीर जो नि:संतान थे, उस बच्चे को अपना लिया और प्यार से ‘बाबा’ नाम दिया. मुस्लिम फकीर ने ही उनका पालन-पोषण किया.
शिरडी में आगमन
कहा जाता है कि बाबा पहली बार सोलह वर्ष की उम्र में शिरडी में एक नीम के पेड़ के तले देखे गए थे. उनके इस निवास के बारे में कुछ चामत्कारिक कथाएं भी हैं. कथा में कहा गया है कि चाँद पाटिल के आश्रय में कुछ समय तक रहें. इसके बाद एक बार पाटिल के एक सम्बन्धी की बारात शिरडी गांव गई, जिसके साथ बाबा भी गए.विवाह संपन्न हो जाने के बाद बारात तो वापस लौट गयी, लेकिन बाबा को वह जगह इतनी पसंद आयी कि वे वही एक जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में रहने लगे और पूरे जीवन वहीं रहे.
‘साईं’ नाम की प्राप्ति
कहा जाता है कि चांद पाटिल के सम्बन्धी की बारात जब शिरडी गांव पहुंची थी तो खंडोबा के मंदिर के सामने ही बैल गाड़ियां खोल दी गयी थीं और बारात के लोग उतरने लगे थे. वहीं एक श्रद्धालु व्यक्ति म्हालसापति ने तरुण फकीर के तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें ‘साईं’ कहकर सम्बोधित किया. धीरे-धीरे शिरडी में सभी लोग उन्हें ‘साईं’ या ‘साईं बाबा’ के नाम से ही संबोधित करने लगे. इस तरह उनको ‘साईं’ नाम की प्राप्ति हुई.
साई के जीने का तरीका
शुरू शुरू में शिरडीवासी साईं बाबा को पागल समझते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी शक्ति और गुणों को जानकर भक्तों की संख्या बढ़ती गयी. कहा जाता है कि साईं बाबा शिरडी के केवल पांच परिवारों से रोज दिन में दो बार भिक्षा मांगते थे. बाबा टीन के बर्तन में तरल पदार्थ और कंधे पर टंगे हुए कपड़े की झोली में रोटी और ठोस पदार्थ इकट्ठा करते थे. सभी सामग्रियों को वे द्वारका माई लाकर मिट्टी के बड़े बर्तन में मिलाकर रख देते थे. कुत्ते, बिल्लियां, चिड़िया निःसंकोच आकर खाने का कुछ अंश खा लेते थे, बची हुए भिक्षा को साईं बाबा भक्तों के साथ मिल बांट कर ग्रहण करते थे.
साई बाबा के चमत्कार
साईं बाबा ने अपने जीवन में ऐसे कई चमत्कार दिखाए, जिससे लोगों ने इनमें भगवान का अंश महसूस किया.इन्हीं चमत्कारों ने साईं बाबा को ईश्वर का अवतार बना दिया. कहा जाता है कि एक बार लक्ष्मी नामक एक स्त्री संतान सुख के लिए तड़प रही थी. साईं बाबा के महिमा को जानकर एक दिन साईं बाबा के पास अपनी विनती लेकर पहुंची. साईं बाबा ने उसे उदी यानी भभूत दिया और कहा आधा तुम खा लेना और आधा अपने पति को दे देना. लक्ष्मी ने ठीक ऐसा ही किया. निश्चित समय पर लक्ष्मी गर्भवती हुई. साईं के इस चमत्कार से वह साईं की भक्त बन गयी और जहां भी जाती साईं बाबा के गुणगाती.